Monday, September 15

वाक्य के अंग

 


(घटक)

वाक्य का मूल प्रकार्य किसी वस्तु या इकाई आदि के बारे में कोई सूचना प्रदान करना है। अतः इस दृष्टि से विचार किया जाए तो वाक्य के मूलतः दो भाग किए जा सकते हैं। इन भागों को ही हम वाक्य के अंग या घटक कहते हैं, जो इस प्रकार हैं-

(क) उद्देश्य (Subject) : वाक्य का वह भाग जिसके बारे में कुछ कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं।संप्रेषण की दृष्टि से विचार किया जाए तो वाक्य के किस अंग के बारे में वक्ता को पहले से ज्ञान होता है। उदाहरण-

       वह बच्ची खेल रही है।

       तुम बहुत पढ़ाई करते हो।

इन वाक्यों में ‘वह बच्ची’ और ‘तुम’ उद्देश्य हैं। वाक्य के शेष भाग द्वारा इन्हीं के बारे में सूचना दी जा रही है।

(ख) विधेय (Predicate) :  वाक्य का वह भाग जिसके माध्यम से उद्देश्य के बारे में कोई सूचना प्रदान की जाती है, विधेय कहलाता है।  विधेय के माध्यम से ही श्रोता को वाक्य द्वारा अभिप्रेत सूचना प्राप्त होती है। उदाहरण-

       वह बच्ची खेल रही है।

       तुम बहुत पढ़ाई करते हो।

इन वाक्यों में ‘खेल रही है’ और ‘बहुत पढ़ाई करते हो’ विधेय हैं, क्योंकि वाक्य में इन्हीं के माध्यम से उद्देश्य के बारे में सूचना दी जा रही है।

आधुनिक भाषाविज्ञान में ‘उद्देश्य’ को ‘टॉपिक’ और ‘विधेय’ को ‘कमेंट’ भी कहा गया है।

 

वाक्य रचना के अनिवार्य और ऐच्छिक घटक

1. वाक्य

वाक्य भाषा की मूलभूत संप्रेषणात्मक इकाई है। वाक्य में घटकों का स्वरूप और वाक्य द्वारा अभिव्यक्त सूचना के आधार पर मूलतः इसके दो वर्ग किए जा सकते  हैं- (1) मुख्य क्रिया युक्त वाक्य (2) मुख्य क्रिया हीन वाक्य। यहाँ पर ‘मुख्य क्रिया’ (main verb) शब्द का तात्पर्य ‘कोशीय क्रिया’ (lexical verb) से है। दूसरे शब्दों में इन वर्गों को ‘क्रियाप्रधान वाक्य’ और ‘कोप्यूला वाक्य’ भी कह सकते हैं, जैसा कि सूरजभान सिंह द्वारा ‘हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण’ (2000) में कहा गया है।

रचना की दृष्टि से वाक्य में कुछ प्रकार्य-स्थान (slots) होते हैं। इन प्रकार्य-स्थानों पर संज्ञा पदबंध और अन्य प्रकार के पदबंध आवश्यकतानुसार आते हैं और वाक्य की रचना करते हैं। क्रिया वाक्य का केंद्र होती है। किसी एक वाक्य की रचना के लिए वह मुख्य क्रिया और कोप्यूला क्रिया (केवल सहायक क्रिया) दोनों में से किसी एक प्रकार की होती है। इसके अलावा अन्य प्रकार्य-स्थानों पर आने वाले विभिन्न पदबंधों के माध्यम से वाक्य बनता है। वाक्य के घटक के रूप में इन पदबंधों के दो वर्ग किए जा सकते हैं- अनिवार्य और ऐच्छिक।

2. वाक्य रचना के अनिवार्य घटक

वाक्य का केंद्र क्रिया होती है। अतः किसी भी वाक्य में क्रिया मूलभूत अनिवार्य घटक होती है। वह ‘व्यक्त’ या ‘अनुक्त’ दोनों में से किसी भी प्रकार की हो सकती है। जैसे-

मोहन घर जाएगा।

इस वाक्य में ‘जाएगा’ मुख्य क्रिया है, जो व्यक्त रूप में वाक्य में आई ही है। इसी प्रकार-

मोहन घर जाएगा और रमेश भी।

इस वाक्य में ‘रमेश भी’ के बाद ‘जाएगा’ क्रिया अनुक्त है।

वाक्य में क्रिया के अलावा वे सभी घटक जिनकी क्रिया के संपादन हेतु आवश्यकता पड़ती है, अनिवार्य घटक कहलाते हैं। किसी वाक्य में कितने घटक अनिवार्य होंगे? यह क्रिया के रूप और अर्थ  पर निर्भर करता है। क्रिया और अनिवार्य घटकों को मिलाकर वाक्य-साँचे (Sentence frames) बनाए जाते हैं।

1. पदबंध

पदबंध वह मूलभूत इकाई है, जिसके द्वारा वाक्यों का निर्माण किया जाता है। वाक्य का निर्माण शब्द या पद से नहीं, उपवाक्य से नहीं, बल्कि पदबंध से होता है। किसी वाक्य में एक या एक से अधिक पद या शब्द जब किसी एक प्रकार्य के स्थान पर आते हैं, तो वे पदबंध का कार्य करते हैं। किंतु वाक्य में कौन-सा शब्द या कितने शब्दों या पदों का समूह एक पदबंध का काम कर रहा है। यह निर्धारित करना कठिन कार्य होता है, क्योंकि दो पदबंधों के बीच कोई ऐसा चिह्नक प्रयुक्त नहीं होता, जिससे यह पता चल सके कि कहाँ तक एक पदबंध की लंबाई है। यह श्रोता या पाठक के भाषाई ज्ञान और विवेक पर ही निर्भर करता है कि वह पता लगा लेता है कि संबंधित वाक्य में कितने पदबंध हैं और कौन-सा पदबंध कहाँ समाप्त हो रहा है।

 किसी वाक्य में आए हुए पदबंधों की संख्या और उनका स्वरूप जानने के लिए हमें पदबंध के प्रकार जानने चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं पदबंध को दो दृष्टियों से वर्गीकृत किया जाता है- संरचना की दृष्टि से और प्रकार्य की दृष्टि से। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार से देख सकते हैं-

1.1 संरचना की दृष्टि से पदबंध के प्रकार

संरचना की दृष्टि से पदबंध के दो वर्ग किए गए हैं-  अंतःकेंद्रिक और बाह्य केंद्रिक। यह वर्गीकरण पदबंध में शीर्ष पद के होने या न होने की दृष्टि से है।

 (1) अंतःकेंद्रिक पदबंध

वह पदबंध जिसका शीर्ष (या केंद्र) पदबंध में उपस्थित होता है , अंतःकेंद्रिक पदबंध कहलाता है। इसके तीन प्रकार हैं-

(क) सविशेषक (Attributive) पदबंध

(ख) समवर्गीय (Appositional) पदबंध

(ग) समानाधिकरण (Coordinative) पदबंध

(2) बाह्यकेंद्रिक पदबंध

 ऐसे पदबंध जिनमें पदबंध के अंदर शीर्ष नहीं होता, बाह्यकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। इसके दो प्रकार हैं-

(क) अक्ष-संबंधक (Axis relater) पदबंध

(ख) गुंफित (Closed-knit) पदबंध

(इनके बारे में विस्तार से आप ‘हिंदी की वाक्य संरचना’ में पढ़ सकते हैं)

1.2 प्रकार्य की दृष्टि से पदबंध के प्रकार

इसमें दो उपवर्ग किए जाते हैं-

 (1) संरचनात्मक प्रकार्य की दृष्टि से वर्गीकरण - संरचनात्मक प्रकार्य के आधार पर पदबंधों के निम्नलिखित वर्ग किए जाते हैं-

(क) संज्ञा पदबंध

(ख) सर्वनाम पदबंध

(ग) विशेषण पदबंध

(घ) क्रिया पदबंध

(ङ) क्रियाविशेषण पदबंध

(च) अव्यय पदबंध

इनमें चाहें तो संज्ञा और सर्वनाम पदबंध को एक ही वर्ग ‘संज्ञा पदबंध’ में रख सकते हैं या प्रायः रखते हैं। इसी प्रकार ‘परसर्गीय पदबंध (Postpositional Phrase- PP) भी देखा जा सकता है।

(इनके बारे में भी विस्तार से आप ‘हिंदी की वाक्य संरचना’ में पढ़ सकते हैं)

 (2) व्याकरणिक प्रकार्य की दृष्टि से पदबंध के प्रकार

वाक्य में सभी पदबंध विभिन्न प्रकार्यात्मक भूमिकाओं के माध्यम से आपस में जुड़े होते हैं। इन भूमिकाओं को व्याकरणिक प्रकार्य कहते हैं। इस दृष्टि से पदबंधों को ‘कर्ता पदबंध, कर्म पदबंध, करण पदबंध, (अर्थात सभी कारक संबंध) और पूरक पदबंध आदि में वर्गीकृत किया जाता है।

इन्हें आगे विस्तार से देखते हैं।

2. पदबंध और कारक संबंध

2.1 कर्ता कारक

किसी वाक्य में वह संज्ञा पदबंध जो मुख्य क्रिया द्वारा अभिप्रेत कार्य को संपादित करता है, वह मुख्य क्रिया के साथ कर्ता कारक संबंध में होता है। क्रिया वाले किसी भी वाक्य में क्रिया के अलावा कर्ता का होना आवश्यक होता है। यदि कर्ता न हो, तो उसे अनुक्त (अर्थात छुपा हुआ) माना जाता है, जैसे-

       मोहन घर जाता है ।

       रमेश अपना काम कर रहा है।

       सुरेश ने रोटी नहीं खाई ।

       बंदर पेड़ से नहीं कूदेगा ।

       आपसे खिड़की नहीं खुलेगी ।

       मेरे जाने के बाद तुम यह काम जरूर कर देना।

कर्ता कारक के अन्य रूप

 सामान्यतः कर्ता क्रिया के साथ उसे संपादित करने वाले की भूमिका में आता है, किंतु सदैव नहीं ऐसा नहीं होता। कई बार वह दूसरे रूपों में भी वाक्य में प्रयुक्त होता है। दूसरे कर्ता रूपों में प्रयोगों को इस प्रकार से देखा जा सकता है-

(क) सहकर्ता

 कुछ क्रियाओं में एक से अधिक कर्ता की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में मुख्य कर्ता के अलावा आए हुए दूसरे कर्ता को सह र्ता कहते हैं, जैसे-

       राम ने सीता से विवाह किया।

       सुरेश गीता से झगड़ा करता है।

       इस शहर में हिंदुओं का मुसलमानों से कोई झगड़ा नहीं है।

       मेरा उससे विवाद हो गया था।

 इन वाक्यों में ‘सीता, गीता, मुसलमानों, उससे’ सहकर्ता है।

(ख) प्रेरक कर्ता

 हिंदी में क्रियाओं के प्रेरणार्थक रूप भी बनते हैं जब क्रियाओं के प्रेरणार्थक रूप ओ का प्रयोग किया जाता है तो ऐसी स्थिति में क्रिया को संपादित करने वाले मूल करता के अलावा उसे संपादित करने के लिए प्रेरित करने वाले दूसरे करता को प्रेरक करता कहा जाता है उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्यों को देख सकते हैं

       सरिता ने रमेश को दौड़ाया।

       नर्स ने मरीज को दवा पिलाई।

       मालिक ने नौकर को बैठाया।

       मां ने बच्चे को सुलाया।

(ग) मध्यस्थ कर्ता

 कुछ प्रेरणार्थक क्रियाओं में एक से अधिक प्रेरक कर्ता का प्रयोग होता है। ऐसी स्थिति में जो केवल प्रेरणा देता है, वह प्रेरक करता कहलाता है तथा उस कार्य में जो सहभागी कर्ता होता है उसे मध्यस्थ कर्ता कहते हैं। इसे निम्नलिखित उदाहरणों में देख सकते हैं-

       डॉक्टर ने नर्स से मरीज को दवा पिलाई।

       किसान ने हलवाई से लड्डू बनवाए।

       माँ ने बहन से बच्चे को सुलवाया।

       मैंने उन लोगों को पुलिस से पिटवाया।

इन वाक्यों में ‘नर्स, हलवाई, बहन और पुलिस’ मध्यस्थ कर्ता का काम कर रहे हैं।

अर्थ/प्रकार्य की दृष्टि से रूप

 वाक्य में प्रयुक्त होने वाले संज्ञा पदबंध अपने अर्थ या वाक्यात्मक प्रकार्य की दृष्टि से अलग-अलग तरह से क्रिया को संपादित करते हैं। इसके आधार पर भी कुछ अन्य प्रकार भी किए जा सकते हैं, जैसे-

(क) सक्रिय कर्ता

 जो कर्ता क्रिया को सीधे-सीधे संपादित करता है, वह सक्रिय कर्ता कहलाता है, सामान्यतः वाक्य में ऐसे ही कर्ता पदबंध आते हैं। ऊपर दिए गए उदाहरण सक्रिय कर्ता के ही हैं।

(ख) अनुभावक कर्ता

 वाक्य में क्रिया पदबंध को संपादित करने के लिए आए हुए वे संज्ञा पदबंध जो क्रिया को सक्रिय रूप से संपादित नहीं करते, बल्कि उसके द्वारा अभिव्यक्त किए जा रहे कार्य या प्रक्रिया को केवल महसूस करते हैं, अनुभावक कर्ता कहलाते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्यों को देख सकते हैं-

       मोहन को बुखार है।

       रमेश को इस बात का बहुत दुख हुआ।

       सीता को कभी दर्द नहीं होता।

2.2 कर्म कारक

जिस संज्ञा पदबंध पर वाक्य की मुख्य क्रिया द्वारा अभिव्यक्त कार्य का प्रभाव पड़ता है, वह ‘कर्म कारक’ कहलाता है। कर्म की आवश्यकता होने या ना होने के आधार पर क्रिया के तीन भेद किए जाते हैं- अकर्मक क्रिया, सकर्मक क्रिया और द्विकर्मक क्रिया। सकर्मक और द्विकर्मक क्रियाओं के ही कर्म कारक होते हैं, जैसे-

       वह लड़का आम खाता है।

       तुम दवाई पीते हो।

       लड़की रोटी पका रही थी।

       हम कल खाना खाएंगे।

द्विकर्मक क्रिया वाले वाक्यों में द्वितीयक कर्म भी आ सकता है, जैसे-

       मोहन दिनेश को कपड़ा देता है।

2.3 करण कारक

जिन संज्ञा पदबंधों द्वारा वाक्य की मुख्य क्रिया द्वारा अभिव्यक्त अर्थ के संपादन में कर्ता के साथ सहायक उपकरण का कार्य किया जाता है, वे वाक्य में करण कारक में होते हैं।

       वह ट्रैक्टर से खेत जोत रहा है।

       सरला मोबाइल से बात कर रही है।

       राजेश लकड़ी से मार रहा है।

       मोहन पानी से नहा रहा है।

2.4 संप्रदान कारक

संप्रदान कारक वह कारक है, जिसमें क्रिया के संपादित होने से संबंधित संज्ञा पद को लाभ होता है। इसे गौण कर्म भी कहा गया है, उदाहरण-

       मैंने यह पुस्तक सरिता के लिए खरीदी है।

       यहां पर बच्चों के लिए मेला लगा है।

       अभी बड़े लोगों के लिए स्कूल नहीं खोला जाएगा।

       आज का दिन साफ सफाई के लिए है।

2.5 अपादान कारक

अपादान कारक वह कारक है, जिसमें वाक्य में आए हुए संज्ञा पदबंध से क्रिया के संपादित होने पर अलग होने का बोध होता है। उदाहरण-

       पेड़ से पत्ते गिरते हैं ।

       दिल्ली से गाड़ी आ रही है।

       मैं स्कूल से घर आ गया हूं।

       अब यह लड़का आपसे बहुत दूर हो गया है।

2.6 अधिकरण कारक

किसी वाक्य में वह संज्ञा पदबंध अधिकरण कारक के रूप में होता है, जो क्रिया के संपादित होने के आधार का काम करता है। उदाहरण-

       वह कमरे में बैठकर काम करता है ।

       मोहन बस में बैठा हुआ है।

       सभी लोग छत पर काम कर रहे हैं।

       कार्यक्रम उसे सभागार में चल रहा है।

       सड़क पर बहुत सारी गाड़ियां चलती हैं।

 

संरचना की दृष्टि से वाक्य के प्रकार

 संरचना की दृष्टि से वाक्य के प्रकार के अंतर्गत हम यह देखते हैं कि हिंदी में किन-किन रूपों में वाक्य निर्मित या अभिव्यक्त होते हैं। इस दृष्टि से वाक्य के दो प्रकार किए जा सकते हैं-

सरल वाक्य

असरल वाक्य

इनमें सरल वाक्य के दो उपभेद किए जाते हैं-

मिश्र वाक्य

संयुक्त वाक्य

 सरल वाक्य के अलावा असरल वाक्य के दोनों उपभेदों को मिला दिया जाए तो वाक्य के कुल 03 प्रकार हो जाते हैं, जिन्हें इस प्रकार से समझ सकते हैं-

(क) सरल वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें केवल एक समापिका क्रिया होती है, सरल वाक्य कहलाते हैं। संप्रेषण के स्तर पर ऐसे वाक्यों में केवल एक उद्देश्य और एक विधेय होते हैं, जैसे-

       रमेश चुपचाप अपना काम कर रहा है।

        आज मेरे घर क्या बना है?

        सीता एक अच्छी लड़की है।

उपर्युक्त वाक्यों में एक-एक कार्यों के बारे में सूचना मिल रही है। अतः ये सरल वाक्य हैं। यहां ध्यान रखने वाली बात है कि सरल वाक्य की लंबाई कितनी भी हो सकती है। अर्थात इनमें पदबंधों की संख्या निश्चित नहीं है, किंतु अंततः उनके योग से केवल एक ही काम के संपन्न होने की सूचना प्राप्त होती है।

(ख) मिश्र वाक्य : यह एक प्रकार का असरल वाक्य है, जिसका निर्माण एक से अधिक उपवाक्यों के योग से होता है। उन उपवाक्यों की व्यवस्था का विश्लेषण किया जाए तो मिश्र वाक्य में एक मुख्य उपवाक्य होता है और एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं। इन्हें सूत्र रूप में इस प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं-

 मिश्र वाक्य  = मुख्य उपवाक्य  + आश्रित उपवाक्य

उदाहरण-

    मैंने कहा कि आज तुम्हारा काम हो जाएगा।

     वह आदमी गांव गया है जो बहुत झगड़ालू है।

मिश्र वाक्यों की रचना मुख्य उपवाक्य के साथ संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण सभी प्रकार के उपवाक्यों के योग से होती है। इनकी रचना में उपवाक्यों के बीच व्यधिकरण समुच्चयबोधकों (Subordinating conjunctions), जैसे- कि, जो, जो...कि, जिस, क्योंकि, इसलिए आदि का प्रयोग किया जाता है।

(ग) संयुक्त वाक्य : यह भी एक प्रकार का असरल वाक्य है, जिसका निर्माण एक से अधिक उपवाक्यों के योग से होता है।  संयुक्त वाक्य में एक से अधिक मुख्य उपवाक्यों का प्रयोग होता है तथा वे आपस में समानाधिकरण समुच्चयबोधकों (Coordinating conjunctions) के माध्यम से जुड़े होते हैं। संयुक्त वाक्य की संरचना को सूत्र रूप में इस प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं-

 संयुक्त वाक्य = मुख्य उपवाक्य +  मुख्य उपवाक्य

 उदाहरण-

       आज वह परीक्षा देगा और पास हो जाएगा।

        तुम बाजार जाओगे या घर में ही पड़े रहोगे।

इनकी रचना में मुख्य उपवाक्यों के बीच समानाधिकरण समुच्चयबोधकों (Coordinating conjunctions), जैसे- और, तथा, एवं, या, अथावा, अतः क्योंकि, इसलिए आदि का प्रयोग किया जाता है।

सरल वाक्य के इन दोनों भेदों के संयोजन से निम्नलिखित और दो उपभेद भी किए जा सकते हैं-

 संयुक्त मिश्र वाक्य

 मिश्र संयुक्त वाक्य

...............................

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार करते हुए हम यह देखते हैं कि वाक्य द्वारा किस प्रकार की सूचना अभिव्यक्त की जा रही है। अतः अर्थ की दृष्टि से भी वाक्य के मुख्यतः तीन भेद किए जाते हैं-

(क) कथनात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के बारे में कोई कथन उद्धृत किया जाता है या कोई बात कही जाती है, कथनात्मक वाक्य कहलाते हैं। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के सरल और सूचनात्मक वाक्य  आते हैं।

  उदाहरण-

        अब मेरा काम हो गया है।

        तुम बाजार नहीं जाते हो।

 क्या आज सभी लोग विद्यालय जाएंगे?

 यहां पर ध्यान रखने वाली बात है कि वाक्यों का नकारात्मक, प्रश्नवाचक आदि होना अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार को प्रभावित नहीं करता, बल्कि इनका निर्धारण वाक्य रूपांतरण के माध्यम से किया जाता है  जिसके बारे में निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-

वाक्य रूपांतरण (Sentence Transformation)

(ख) आपनिपरक/आज्ञार्थक (Imperative) वाक्य : वे वाक्य जिनमें वक्ता का उद्देश्य श्रोता को निर्देशित या प्रभावित करना होता है, आज्ञार्थक वाक्य कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार की चीजें पाई जाती हैं- आज्ञा, परामर्श और निवेदन। इन तीनों के योग से ही मैंने 'आपनिपरक' (आ+प+नि)  नामक नया शब्द बनाया है, जिससे शब्द से ही हमें वाक्य के भेद की परिभाषा पता चल जाती है।

उदाहरण-

 आज्ञा-

       तुम  जल्दी-जल्दी अपना काम करो।

        चलो जल्दी से बैठ जाओ ।

 परामर्श-

        आपको अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।

         बहुत देर हो गई, अब हमें चलना चाहिए ।

  निवेदन-

        कृपया पहले मेरा काम कर दीजिए।

         हमें यहां बैठने की अनुमति दीजिए ।

(ग) मनोभावात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें वक्ता अपने मनोभावों या संवेगों को व्यक्त करता है, मनोभावात्मक वाक्य कहलाते हैं। इनमें वक्ता अपनी स्वयं की बात को व्यक्त करना चाहता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के मनोभावों को व्यक्त करने वाले वाक्य आते हैं-

इच्छा

 आशीर्वाद

 शोक

 हर्ष

विस्मय                      आदि

 उदाहरण-

       जुग जुग जियो।

        वाह ,आज हमारी टीम जीत गई।

       ओह!  यह तो बहुत बुरा हुआ।

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार करते हुए हम यह देखते हैं कि वाक्य द्वारा किस प्रकार की सूचना अभिव्यक्त की जा रही है। अतः अर्थ की दृष्टि से भी वाक्य के मुख्यतः तीन भेद किए जाते हैं-

(क) कथनात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के बारे में कोई कथन उद्धृत किया जाता है या कोई बात कही जाती है, कथनात्मक वाक्य कहलाते हैं। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के सरल और सूचनात्मक वाक्य  आते हैं।

  उदाहरण-

        अब मेरा काम हो गया है।

        तुम बाजार नहीं जाते हो।

 क्या आज सभी लोग विद्यालय जाएंगे?

 यहां पर ध्यान रखने वाली बात है कि वाक्यों का नकारात्मक, प्रश्नवाचक आदि होना अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार को प्रभावित नहीं करता, बल्कि इनका निर्धारण वाक्य रूपांतरण के माध्यम से किया जाता है  जिसके बारे में निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-

वाक्य रूपांतरण (Sentence Transformation)

(ख) आपनिपरक/आज्ञार्थक (Imperative) वाक्य : वे वाक्य जिनमें वक्ता का उद्देश्य श्रोता को निर्देशित या प्रभावित करना होता है, आज्ञार्थक वाक्य कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार की चीजें पाई जाती हैं- आज्ञा, परामर्श और निवेदन। इन तीनों के योग से ही मैंने 'आपनिपरक' (आ+प+नि)  नामक नया शब्द बनाया है, जिससे शब्द से ही हमें वाक्य के भेद की परिभाषा पता चल जाती है।

उदाहरण-

 आज्ञा-

       तुम  जल्दी-जल्दी अपना काम करो।

        चलो जल्दी से बैठ जाओ ।

 परामर्श-

        आपको अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।

         बहुत देर हो गई, अब हमें चलना चाहिए ।

  निवेदन-

        कृपया पहले मेरा काम कर दीजिए।

         हमें यहां बैठने की अनुमति दीजिए ।

(ग) मनोभावात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें वक्ता अपने मनोभावों या संवेगों को व्यक्त करता है, मनोभावात्मक वाक्य कहलाते हैं। इनमें वक्ता अपनी स्वयं की बात को व्यक्त करना चाहता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के मनोभावों को व्यक्त करने वाले वाक्य आते हैं-

इच्छा

 आशीर्वाद

 शोक

 हर्ष

विस्मय                      आदि

 उदाहरण-

       जुग जुग जियो।

        वाह ,आज हमारी टीम जीत गई।

       ओह!  यह तो बहुत बुरा हुआ।

 

वाक्य रूपांतरण (Sentence Transformation)

आधुनिक भाषाविज्ञान में प्रजनक व्याकरण (Transformation Generative Grammar-TGG) के जनक नोएम चॉम्स्की द्वारा अपने व्याकरण में वाक्य के संदर्भ में दो प्रकार की संरचनाओं की बात की गई है-

(अ) गहन संरचना (Deep Structure)- यह वाक्य का मूल रूप है। इसमें वाक्य सरल, सकारात्मक, सूचनात्मक और कर्तृवाच्य होता है, जैसे-

  मोहन ने आम खाया।

  सीता ने आम खाया।

  मोहन ने मिठाई खाई।

  सीता ने मिठाई खाई।

(आ) बाह्य संरचना (Surface Structure)- हम वाक्य का व्यवहार सूचनाओं का भाँति-भाँति से आदान-प्रदान करने के लिए करते हैं। इसलिए गहन संरचना में प्राप्त होने वाले वाक्य में ही भिन्न-भिन्न प्रकार के रूपांतरण करके उन्हें व्यवहार में लाते हैं। ऐसे वाक्यों की गहन संरचना वही रहती है, केवल बाह्य संरचना बदल जाती है।

 

हिंदी वाक्यों के कुछ रूपांतरण

हिंदी में गहन संरचना में बने मूल (निश्‍चयार्थक) वाक्यों में रूपांतरण करके निम्नलिखित प्रकार के वाक्य बनाए जाते हैं-

मूल वाक्य

  मोहन ने आम खाया।

  सीता ने आम खाया।

  मोहन ने मिठाई खाई।

  सीता ने मिठाई खाई।

 

रूपांतरण

(1) नकारात्मकीकरण (निषेधार्थक वाक्य बनाना)

निषेधार्थक वाक्य बनाने की प्रक्रिया को नकारात्मकीकरण कहते हैं-

  मोहन ने आम नहीं खाया।

  सीता ने आम नहीं खाया।

  मोहन ने मिठाई नहीं खाई।

  सीता ने मिठाई नहीं खाई।

 

(2) प्रश्नवाचकीकरण (प्रश्‍नार्थक वाक्य बनाना)

प्रश्नार्थक वाक्य बनाने की प्रक्रिया को प्रश्नवाचकीकरण कहते हैं। इसके दो रूप हैं-

(i) हाँ/नहीं (Yes/No) उत्तर वाले प्रश्न

  क्या मोहन ने आम खाया?

  क्या सीता ने आम खाया?

  क्या मोहन ने मिठाई खाई?

  क्या सीता ने मिठाई खाई?

(ii) Wh प्रश्न

  मोहन ने आम क्यों खाया?

  सीता ने आम कैसे खाया?

  मोहन ने मिठाई कहाँ खाई?

  सीता ने मिठाई कब खाई?

 

(3) आपनिकरण (आपनिपरक (Imperative) वाक्‍य बनाना)

इसके अंतर्गत आज्ञा, परामर्श और निवेदन सूचक बनाने की प्रक्रिया आती है, जैसे-

(i) आज्ञार्थक वाक्य बनाना

  मोहन आम खाता है।

o   मोहन आम खाओ।

(ii) परामर्शसूचक वाक्य बनाना

  सीता आम खाती है।

o   सीता को आम खाना चाहिए।

(iii) निवेदनपरक वाक्य बनाना

  मोहन आम खाता है।

o   मोहन, कृपया मिठाई खाइए।

 

(4) कर्मवाच्यीकरण (कर्मवाच्य वाक्‍य बनाना)

सकर्मक क्रियाओं वाले सरल वाक्यों का रूपांतरण कर्मवाच्य के रूप में किया जा सकता है, जैसे-

  मोहन द्वारा आम खाया गया।

  सीता द्वारा मिठाई खाई गई।

 

(5) भाववाच्यीकरण (कर्मवाच्य वाक्‍य बनाना)

अकर्मक और सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं वाले सरल वाक्यों का रूपांतरण भाववाच्य के रूप में किया जा सकता है, जैसे-

  मैं सोता हूँ।

o   मुझसे सोया नहीं जाता।

  मैं दौड़ूँगा।

o   मुझसे दौड़ा नहीं जाएगा।

  मैं आम खाता हूँ।

o   मुझसे आम खाया नहीं जाता।

 

(6) बहुवचन रूप निर्माण (बहुवचन वाक्‍य बनाना)

एकवचन कर्ता और क्रिया प्रयोग वाले वाक्यों का रूपांतरण बहुवचन प्रयोग वाले वाक्य के रूप में किया जा सकता है, जैसे-

  लड़का आम खाता है।

o   लड़के आम खाते हैं।

  एक पेड़ गिर गया।

o   दस पेड़ गिर गए।

 

(7) स्त्रीलिंग रूप निर्माण (स्त्रीलिंग वाक्‍य बनाना)

पुल्लिंग कर्ता और क्रिया प्रयोग वाले वाक्यों में स्त्रीलिंग कर्ता का प्रयोग करते हुए स्त्रीलिंग प्रयोग वाले वाक्य के रूप में उन्हें बदला जा सकता है, जैसे-

  लड़का आम खाता है।

o   लड़की आम खाती है।

 

(8) बड़ा सरल वाक्‍य बनाना

दो सरल वाक्यों को जोड़कर एक बड़ा (जटिल) सरल वाक्य बनाया जा सकता है, जैसे-

  मुझे आम खाना था। मैं घर गया।

o   मैं आम खाने के लिए घर गया।

 

(9) मिश्र वाक्‍य बनाना

दो सरल वाक्यों को जोड़कर एक मिश्र वाक्य बनाया जा सकता है, ऐसी स्थिति में मुख्य कथन ‘मुख्य उपवाक्य’ तथा सहायक कथन ‘आश्रित उपवाक्य’ के रूप में आते हैं, जैसे-

  मैंने कहा। मुझे आम खाना है।

o   मैंने कहा कि मुझे आम खाना है।

 

(10) संयुक्त वाक्‍य बनाना

दो सरल वाक्यों को जोड़कर एक संयुक्त वाक्य भी बनाया जा सकता है, ऐसी स्थिति में दोनों सरल वाक्य परस्पर ‘मुख्य उपवाक्य’ होते हैं, जैसे-

  मुझे आम खाना है। मुझे सोना है।

o   मुझे आम खाना है और सोना है।

 

उपर्युक्त सभी प्रकार के रूपांतरण अलग-अलग प्रकार के रूपांतरण हैं। किस प्रकार की रचनाओं का किस प्रकार की रचनाओं में किन परिस्थितियों में रूपांतरण होता है और किन परिस्थितियों में नहीं होता है, को ठीक-ठीक समझने के लिए भाषावैज्ञानिकों या वैयाकरणों द्वारा गहन चिंतन-मनन और विश्लेषण करते हुए संबंधित नियमों की खोज की जाती है।

रूपांतरण और सार्वभौमिकता

कुछ रूपांतरण लगभग सभी भाषाओं में होते हैं, तो कुछ केवल कुछ भाषाओं में ही होते हैं। सभी भाषाओं में पाए जाने वाले रूपांतरण ‘सार्वभौमिक रूपांतरण’ हैं तो एक या कुछ भाषाओं में पाए जाने वाले रूपांतरण ‘भाषा विशिष्ट रूपांतरण’। उदाहरण के लिए नकारात्मकीकरण और प्रश्नवाचकीकरण सभी भाषाओं में पाए जाने वाले रूपांतरण हैं, जबकि ‘भाववाच्यीकरण’ सभी भाषाओं में नहीं होता। इसी प्रकार अंग्रेजी में ‘Direct sentence- Indirect Sentence’ का रूपांतरण होता है, जो हिंदी या भारतीय भाषाओं में नहीं होता।

 

वाक्य संरचना तथा उपवाक्य संरचना

भाषा  संरचना के स्तरों में उपवाक्य  की बात की जाती है जो पदबंध से बड़ी किंतु वाक्य से छोटी इकाई है। इसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं-

"उपवाक्य वह वाक्य स्तरीय भाषिक इकाई है, जो अपने से बड़े वाक्य का अंग होती है।"

चूँकि उपवाक्य अपने आप में वाक्य ही होता है, अतः उसमें वाक्य की तरह ‘उद्देश्य और विधेय’ भी होते हैं। कभी-कभी किसी उपवाक्य में कोई घटक अनुक्त या छुपा हुआ हो सकता है।

इस प्रकार उपवाक्य को दूसरे शब्दों में निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं-

"असरल वाक्यों (संयुक्त और मिश्र वाक्यों) में आने वाले वाक्य स्तर के भाग (या अंश) उपवाक्य कहलाते हैं।"

 उपवाक्य सरल वाक्य ही होते हैं, लेकिन वे आपस में जुड़कर बड़े वाक्य का निर्माण करते हैं।  इन्हें निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से अच्छे से समझ सकते हैं-

       वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था। => (मिश्र वाक्य) => दो उपवाक्य

       मैंने कहा कि तुम घर जाओ। => (मिश्र वाक्य) => दो उपवाक्य

       आज भारत मैच जीतेगा या वर्ल्ड कप से बाहर हो जाएगा।=> (संयुक्त वाक्य) => दो उपवाक्य

 उपवाक्य के प्रकार

उपवाक्य के दो प्रकार किए गए हैं- मुख्य उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार समझ सकते हैं-

(1) मुख्य उपवाक्य : किसी असरल वाक्य का वह उपवाक्य जिसके अर्थ को समझने के लिए दूसरे संबंधित उपवाक्य के अर्थ को समझने की आवश्यकता नहीं होती, मुख्य उपवाक्य कहलाता है।  अर्थात मुख्य उपवाक्य असरल वाक्य का  वह अंश होता है जो  वाक्य के मूल अंश का कार्य करता है, जैसे-

       मैंने कहा कि  आज रमेश घर जाएगा।

इस वाक्य में ‘मैंने कहा’ मुख्य उपवाक्य है। यदि इसमें ‘कहा’ के बाद पूर्ण विराम लगा दिया जाए, तो भी यह वाक्य पूर्ण और संप्रेषणीय है। 'कहा' के बाद आया हुआ घटक यह बताने के लिए आया है कि 'मैंने क्या कहा'। अतः बाद में आया हुआ उपवाक्य कहने पर आश्रित है।

 मिश्र वाक्य में मुख्य उपवाक्य सदैव केंद्रीय होता है तथा संयुक्त वाक्यों की रचना एक से अधिक मुख्य उपवाक्यों से होती है।

(2) आश्रित उपवाक्य : ऐसा उपवाक्य जिसके अर्थ या संदर्भ को समझने के लिए दूसरे उपवाक्य का बोध आवश्यक होता है, आश्रित उपवाक्य कहलाता है, जैसे-

‘मैंने कहा कि तुम घर जाओ’

इस वाक्य में ‘कि तुम घर जाओ’ आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि इस बात के द्वारा अभिव्यक्त अर्थ मुख्य उपवाक्य में आई हुई क्रिया 'कहना' के कर्म की पूर्ति कर रहा है। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

 मैंने क्या कहा?

 यदि इस प्रश्न का उत्तर उपर्युक्त वाक्य से निकालना हो तो हम कहेंगे 'कि तुम घर जाओ'। अतः 'कि तुम घर जाओ' उपवाक्य से अभिव्यक्त सूचना कहने पर ही आश्रित है। इसी कारण यह आश्रित उपवाक्य कहलाता है।

 इसी प्रकार ‘वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था’ वाक्य में ‘वह लड़का बाहर बैठा है’ मुख्य उपवाक्य है जबकि ‘जो कल आया था’ आश्रित उपवाक्य है। इसका कारण है कि ‘जो कल आया था’ द्वारा मुख्य उपवाक्य के 'वह लड़का' पदबंध के बारे में सूचना दी जा रही है।

आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य में किसी न किसी घटक का प्रकार्य संपन्न करते हैं। इसे ही ध्यान में रखते हुए उनके द्वारा संपन्न किए जाने वाले प्रकार्य के आधार पर इनके के तीन प्रकार किए गए हैं-

(क) संज्ञा उपवाक्य : वे आश्रित उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में संज्ञा का प्रकार्य संपन्न करते हैं, संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। ये सामान्यतः मुख्य उपवाक्य में ‘कर्ता’ और ‘कर्म’ के स्थान पर आने की क्षमता रखते हैं, जैसे-

मैंने पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है

 इस वाक्य में 'तुम्हारा नाम क्या है' संज्ञा उपवाक्य है, जो 'पूछना' क्रिया के कर्म का काम कर रहा है। इसे मुख्य उपवाक्य में स्थानांतरित करते हुए वाक्य को ‘मैंने तुम्हारा नाम पूछा’ के रूप में भी लिखा जा सकता है।

(ख) विशेषण उपवाक्य : वे  उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में विशेषण के स्थान पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं, विशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे-

वह लड़का बहुत बीमार है जो कल बारिश में भीग गया था

 इस वाक्य में 'जो कल भीग गया था' विशेषण उपवाक्य है, जो मुख्य उपवाक्य में 'वह लड़का' के बारे में सूचना दे रहा है।

(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य : वे उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य करते हैं, क्रियाविशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे-

जैसे ही मैं कोई अच्छा काम शुरू करता हूं तुम आ जाते हो

 इस वाक्य में 'जैसे ही मैं कोई अच्छा काम शुरू करता हूं' 'क्रियाविशेषण उपवाक्य' है, क्योंकि इसके द्वारा 'तुम आ जाते हो' के समय की सूचना दी जा रही है।

हिंदी की उपवाक्य संरचना

भाषा  संरचना के स्तरों में उपवाक्य  की बात की जाती है जो पदबंध से बड़ी किंतु वाक्य से छोटी इकाई है। इसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं-

"उपवाक्य वह वाक्य स्तरीय भाषिक इकाई है, जो अपने से बड़े वाक्य का अंग होती है।"

चूँकि उपवाक्य अपने आप में वाक्य ही होता है, अतः उसमें वाक्य की तरह ‘उद्देश्य और विधेय’ भी होते हैं। कभी-कभी किसी उपवाक्य में कोई घटक अनुक्त या छुपा हुआ हो सकता है।

इस प्रकार उपवाक्य को दूसरे शब्दों में निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं-

"असरल वाक्यों (संयुक्त और मिश्र वाक्यों) में आने वाले वाक्य स्तर के भाग (या अंश) उपवाक्य कहलाते हैं।"

 उपवाक्य सरल वाक्य ही होते हैं, लेकिन वे आपस में जुड़कर बड़े वाक्य का निर्माण करते हैं।  इन्हें निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से अच्छे से समझ सकते हैं-

       वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था। => (मिश्र वाक्य) => दो उपवाक्य

       मैंने कहा कि तुम घर जाओ। => (मिश्र वाक्य) => दो उपवाक्य

       आज भारत मैच जीतेगा या वर्ल्ड कप से बाहर हो जाएगा।=> (संयुक्त वाक्य) => दो उपवाक्य

 उपवाक्य के प्रकार

उपवाक्य के दो प्रकार किए गए हैं- मुख्य उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार समझ सकते हैं-

(1) मुख्य उपवाक्य : किसी असरल वाक्य का वह उपवाक्य जिसके अर्थ को समझने के लिए दूसरे संबंधित उपवाक्य के अर्थ को समझने की आवश्यकता नहीं होती, मुख्य उपवाक्य कहलाता है।  अर्थात मुख्य उपवाक्य असरल वाक्य का  वह अंश होता है जो  वाक्य के मूल अंश का कार्य करता है, जैसे-

       मैंने कहा कि  आज रमेश घर जाएगा।

इस वाक्य में ‘मैंने कहा’ मुख्य उपवाक्य है। यदि इसमें ‘कहा’ के बाद पूर्ण विराम लगा दिया जाए, तो भी यह वाक्य पूर्ण और संप्रेषणीय है। 'कहा' के बाद आया हुआ घटक यह बताने के लिए आया है कि 'मैंने क्या कहा'। अतः बाद में आया हुआ उपवाक्य कहने पर आश्रित है।

 मिश्र वाक्य में मुख्य उपवाक्य सदैव केंद्रीय होता है तथा संयुक्त वाक्यों की रचना एक से अधिक मुख्य उपवाक्यों से होती है।

(2) आश्रित उपवाक्य : ऐसा उपवाक्य जिसके अर्थ या संदर्भ को समझने के लिए दूसरे उपवाक्य का बोध आवश्यक होता है, आश्रित उपवाक्य कहलाता है, जैसे-

‘मैंने कहा कि तुम घर जाओ’

इस वाक्य में ‘कि तुम घर जाओ’ आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि इस बात के द्वारा अभिव्यक्त अर्थ मुख्य उपवाक्य में आई हुई क्रिया 'कहना' के कर्म की पूर्ति कर रहा है। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

 मैंने क्या कहा?

 यदि इस प्रश्न का उत्तर उपर्युक्त वाक्य से निकालना हो तो हम कहेंगे 'कि तुम घर जाओ'। अतः 'कि तुम घर जाओ' उपवाक्य से अभिव्यक्त सूचना कहने पर ही आश्रित है। इसी कारण यह आश्रित उपवाक्य कहलाता है।

 इसी प्रकार ‘वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था’ वाक्य में ‘वह लड़का बाहर बैठा है’ मुख्य उपवाक्य है जबकि ‘जो कल आया था’ आश्रित उपवाक्य है। इसका कारण है कि ‘जो कल आया था’ द्वारा मुख्य उपवाक्य के 'वह लड़का' पदबंध के बारे में सूचना दी जा रही है।

आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य में किसी न किसी घटक का प्रकार्य संपन्न करते हैं। इसे ही ध्यान में रखते हुए उनके द्वारा संपन्न किए जाने वाले प्रकार्य के आधार पर इनके के तीन प्रकार किए गए हैं-

(क) संज्ञा उपवाक्य : वे आश्रित उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में संज्ञा का प्रकार्य संपन्न करते हैं, संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। ये सामान्यतः मुख्य उपवाक्य में ‘कर्ता’ और ‘कर्म’ के स्थान पर आने की क्षमता रखते हैं, जैसे-

मैंने पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है

 इस वाक्य में 'तुम्हारा नाम क्या है' संज्ञा उपवाक्य है, जो 'पूछना' क्रिया के कर्म का काम कर रहा है। इसे मुख्य उपवाक्य में स्थानांतरित करते हुए वाक्य को ‘मैंने तुम्हारा नाम पूछा’ के रूप में भी लिखा जा सकता है।

(ख) विशेषण उपवाक्य : वे  उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में विशेषण के स्थान पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं, विशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे-

वह लड़का बहुत बीमार है जो कल बारिश में भीग गया था

 इस वाक्य में 'जो कल भीग गया था' विशेषण उपवाक्य है, जो मुख्य उपवाक्य में 'वह लड़का' के बारे में सूचना दे रहा है।

(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य : वे उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य करते हैं, क्रियाविशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे-

जैसे ही मैं कोई अच्छा काम शुरू करता हूं तुम आ जाते हो

 इस वाक्य में 'जैसे ही मैं कोई अच्छा काम शुरू करता हूं' 'क्रियाविशेषण उपवाक्य' है, क्योंकि इसके द्वारा 'तुम आ जाते हो' के समय की सूचना दी जा रही है।

 

 

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वाक्य के अंग

  (घटक) वाक्य का मूल प्रकार्य किसी वस्तु या इकाई आदि के बारे में कोई सूचना प्रदान करना है। अतः इस दृष्टि से विचार किया जाए तो वाक्य के मूल...

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