(1) शब्द का अर्थ तथा
वर्गीकरण
शब्द ध्वनियों के उस
समूह को कहते है जिसका कोई विशेष अर्थ हो। हिंदी की शब्द संरचना का अध्ययन मुख्यतः
दो आधारों पर होता सकता है-
(क) निर्माण की दृष्टि
से, (ख) स्रोत के दृष्टि से,
(क) निर्माण की दृष्टि
से
हिंदी के शब्दों को
तीन प्रकारों का माना गया है- रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़ शब्द।
रूढ़ शब्द
ये वे शब्द है जिनकी
ध्वनियों को अलग कर के कोई अर्थ नहीं निकाला जा सकता या जिनकी व्युत्पत्ति ज्ञात न
हो, जैसे- हाथ, पेट, किताब इत्यादि।
यौगिक शब्द
ये वे शब्द है जो दो
या दो से अधिक रूढ़ शब्दों से मिलकर बनते है तथा जिनका अर्थ दोनों के अर्थ जुड़ने से
निर्धारित होता है, जैसे- पुस्तकालय, हथगोला, जलज इत्यादि।
योगरूढ़ शब्द
ये ऐसे शब्द है जो संरचना
की दृष्टि से यौगिक है किन्तु जिनका अर्थ एक विशेष रूप में रूढ़ हो चुका हो उदाहरण
के लिए पंकज शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ होगा- कीचड़ में जन्म लेने वाला किन्तु इसका
प्रचलित अर्थ है कमल, जो कि रूढ़ हो चुका है। इसी प्रकार नीलकंठ इत्यादि शब्द इसी प्रकार
के हैं।
(ख) स्रोत के आधार पर
हिंदी में चार प्रकार
के शब्द है- तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज।
तत्सम
ये वे शब्द हैं जो संस्कृत
से ज्यों के त्यों स्वीकार कर लिए गए है, जैसे- गृह, अग्नि।
तद्भव
ये वे शब्द हैं जो संस्कृत
के शब्दों के परिवर्तित रूप है, अर्थात मूलतः संस्कृत के हैं किन्तु कुछ परिवर्तन हो
गए है, जैसे काम (कर्म से), आज (अद्य से), हाथ (हस्त से) इत्यादि।
देशज
ये वे शब्द है जो किसी
स्थानीय परंपरा में विकसित होते है तथा अंचल विशेष की सांस्कृतिक पहचान के रूप में
जाने जाते है, जैसे- गमकना, कनिया इत्यादि।
विदेशज
ये वे शब्द है जो किसी
बाहरी भाषा से स्वीकार किए गये है। यद्यपि हिंदी ने बहुत सी भाषाओं के शब्द स्वीकार
किए है, किन्तु इसमे फारसी तथा अंग्रेजी भाषाएँ प्रमुख हैं। उदाहरण के लिए डाक्टर,
रेल, जैसे शब्द अंग्रेजी के हैं, जबकि सरकार, उम्मीद जैसे शब्द फारसी परंपरा के हैं।
(1) संज्ञा
संज्ञा वह पद है जो
किसी व्यक्ति, वस्तु, विचार, भाव, द्रव्य, समूह या जाति के नाम को व्यक्त करता है।
वाक्य निर्माण से पूर्व संज्ञा पद प्रातिपदिक कहलाता है, किन्तु कारक के अनुसार विभक्ति
या परसर्ग से जुड़कर यही प्रातिपदिक 'संज्ञापद' बन जाता है।
(2) संज्ञा के भेद
हिंदी में संज्ञाओं
को प्रायः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है- ' व्यक्तिवाचक संज्ञा', 'जातिवाचक
संज्ञा', 'भाववाचक संज्ञा। कुछ विद्वान इन तीन के अतिरिक्त दो और वर्गों- 'द्रव्यवाचक
संज्ञा' व 'समूहवाचक संज्ञा' को भी स्वीकार करते है। अब यह मन लिया गया है कि ये दोनों
वर्ग संज्ञा के स्वतंत्र भेद न हो कर जातिवाचक संज्ञा के ही उपभेद हैं। संज्ञा के भेदों
का परिचय इस प्रकार है-
(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा
किसी व्यक्ति, स्थान,
प्राणी, या वस्तु विशेष का नाम बताने वाला पद व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाता है। उदाहरण
के लिए - राम, श्याम, सीता, दिल्ली, कानपुर इत्यादि व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ हैं।
(ख) जातिवाचक संज्ञा
जब कोई पद किसी वर्ग
के नाम को व्यक्त करता है तो जातिवाचक संज्ञा कहलाता है। व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी न
किसी जातिवाचक वर्ग की सदस्य होती है। उदाहरण के लिए राम, श्याम जैसी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ
'मनुष्य' जातिवाचक संज्ञा की सदस्य हैं।
जातिवाचक संज्ञा के
अंतर्गत दो उपभेदों की चर्चा भी की जा सकती है-
(1) समूहवाचक संज्ञा
ये वे पद है जो किसी
व्यक्ति, प्राणी या वस्तुओं के समूह को व्यक्त करते है। इन्हें समूह होने के कारण व्यक्तिवाचक
नहीं मान सकते व विशिष्ट होने के कारण जातिवाचक नहीं मान सकते हैं। उदाहरण के लिए
'सेना आगे बढ़ रही है'वाक्य में 'सेना' समूहवाचक संज्ञा है।
(2) द्रव्यवाचक संज्ञा
यदि कोई संज्ञा किसी
पदार्थ का बोध कराती हो तो उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। उदाहरण के लिए 'पानी भर
गया हैं' में पानी।
(ग) भाववाचक संज्ञा
जब कोई पद किसी वस्तु
या व्यक्ति के गुण, स्वभाव या स्थिति को अथवा किसी भाव, विचार, अनुभव, भावना आदि को
व्यक्त करे तो उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। उदाहरण के लिए- विनम्रता, प्रेम, धृणा,
मानवता, बचपन, बुढ़ापा आदि भववाचक संज्ञा के उदाहरण है। भाववाचक संज्ञा प्रायः अन्य
शब्दों (जातिवाचक संज्ञाओं, क्रियाओं, विशेषणों आदि।) में ई, त्व, ता, पन, पा, वट आदि
प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है।
वर्गीकरण की अनिश्चयात्मकता
संज्ञाओं के ये वर्ग
पूर्णतः निश्चयात्मक नहीं है। कभी-कभी संज्ञाएँ विशेष प्रयोगों के कारण अपना वर्ग बदलती
है। जब कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी विशेष गुण के साथ जुड़ जाती है तो उसका प्रयोग
जातिवाचक संज्ञा के रूप में होने लगता है। जैसे 'वह आधुनिक भारत का जयचंद है' वाक्य
में 'जयचंद' व्यक्तिवाचक नहीं जातिवाचक संज्ञा है। इसी प्रकार किसी जातिवाचक संज्ञा
को व्यक्त करने वाला पद यदि किसी किसी व्यक्ति के नाम के गहराई से जुड़ जाए तो वह व्यक्तिवाचक
संज्ञा बन जाता है, जैसे 'नेता जी ने कहा था तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा,
वाक्य में 'नेताजी' पद सुभाष चंद्र बोस के लिए आया है, अतः यह व्यक्तिवाचक संज्ञा है,
जातिवाचक नहीं।
संस्कृत व अंग्रेजी
से तुलना
अंग्रेजी में संज्ञाएँ
प्रायः वचन परिवर्तन के अपवाद को छोड़कर प्रायः अविकारी बनी रहती है जबकि हिंदी में
संज्ञा विकारी पद है। उदाहरण के लिए-
Girls, come here
> लड़कियों, यहाँ आओ, Girls are going > लड़कियाँ जा रही हैं।
हिंदी की संज्ञा संरचना
संस्कृत की तुलना में काफी सरल है। इसका कारण यह है कि संस्कृत में 8 कारकों, 3 लिंगों
तथा वचनों के कारण संज्ञा के 72 रूप बनते थे। हिंदी में लिंग व वचन 2-2 रह गए और कारक
रचना में विभक्तियों का स्थान परसर्गों ने ले लिया। इसीलिए रूपों की विविधता काफी कम
हो गई।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, हिंदी की
संज्ञा व्यवस्था व्याकरण के दायित्वों का कुशल निर्वाह करती है। यदपि यह संस्कृत के
सरलीकरण से बनी है किन्तु इस सरलीकरण की परिणती अतार्किकता में नहीं हुई है।
(2) सर्वनाम
ये वे पद हैं जो संज्ञा
के स्थान पर प्रयुक्त होते है। सर्वनाम दो शब्दाशों का योग है सर्व-नाम। इसका अर्थ
हुआ कि जो सभी का नाम हो सकता है, वही सर्वनाम है। संज्ञाएँ व्यक्ति, वस्तु, भाव, समूह,
द्रव्य या जाति विशेष को व्यक्त करती है जबकि सर्वनाम बहुत सी संज्ञाओं के लिए समान
रूप से प्रयुक्त हो सकते हैं। इसका प्रयोग इसलिए किया जाता है कि भाषा में संज्ञा पदों
की आवृति बार-बार न करनी पड़े। उदाहरण के 'राम कह रहा था कि आज राम, राम के भाई से
मिलने जाएगा' वाक्य में 'राम' संज्ञापद की आवृति प्रवाह में बाधक है। इसके स्थान पर
'राम कह रहा था कि वह आज अपने भाई से मिलने जाएगा' ज्यादा उपयुक्त होता है।
सर्वनाम के भेद
हिंदी में सर्वनाम के
6 भेद स्वीकार किए गए हैं-
(क) पुरूषवाचक सर्वनाम
(ख) प्रश्नवाचक सर्वनाम
(ग) संबंधवाचक सर्वनाम
(घ) निश्चयवाचक सर्वनाम
(ड़) अनिश्चयवाचक सर्वनाम
(च) निजवाचक सर्वनाम
(क) पुरूषवाचक सर्वनाम
हिंदी तथा अन्य भाषाओं
में 3 पुरुष स्वीकार किए गए हैं- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष व उत्तम पुरुष। इन तीनों
के लिए हिंदी में निम्नलिखित सर्वनाम प्रचलित हैं।
एकवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष वह वे
मध्यम पुरुष तू तुम
उत्तमपुरुष मैं हम
पुरूषवाचक सर्वनामों
में व्यवहारिक तौर पर कुछ समस्याएँ आती हैं, जैसे-
(क) बिहारी हिंदी तथा
पूर्वी हिंदी की कुछ बोलियाँ में उत्तम पुरुष एकवचन में 'मैं' के स्थान पर 'हम' सर्वनाम
का प्रयोग होता है। इस कारण उत्तम पुरुष में बहुवचन में 'हम' के स्थान पर 'हम' के स्थान
पर 'हम लोग' का प्रयोग किया जाता है।
(ख) हिंदी की कई बोलियों
तथा अभिजात्य वर्ग की भाषा में 'तू' शब्द का प्रयोग निंदनीय माना जाता है। इसका परिणाम
यह होता है कि मध्यम पुरुष बहुवचन का सर्वनाम 'तुम' मध्यम पुरुष एकवचन में प्रयुक्त
होने लगता है। इसी का अलग चरण यह है कि मध्यम पुरुष बहुवचन के लिए 'तुम लोग' का प्रयोग
करना पड़ता है।
(ग) मध्यम पुरुष तथा
प्रथम पुरुष में यदि किसी आदरणीय व्यक्ति की चर्चा हो तो एकवचन सर्वनाम के स्थान पर
बहुवचन सर्वनाम पर बहुवचन सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण - आप कहाँ जा रहे
हैं?
(ख) प्रश्नवाचक सर्वनाम
ये वे सर्वनाम हैं जो
किसी वस्तु या व्यक्ति के संबंध में प्रश्नवाचकता को व्यक्त करते है जैसे 'राम कहाँ
गया है' में 'कहाँ' प्रश्नवाचक सर्वनाम है जो कि 'राम अयोध्या गया' की व्यक्तिवाचक
संज्ञा 'अयोध्या' के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है।
(ग) संबंधवाचक सर्वनाम
इस सर्वनाम का प्रयोग
प्रायः मिश्र वाक्यों में होता है जहाँ एक से अधिक वाक्यों के संबंध जोड़ने के लिए
इनकी आवश्यकता पड़ती है। उदाहरण के लिए, 'जो पढ़ेगा वही सफल होगा' वाक्य में 'जो' व
'वही' संबंधवाचक सर्वनाम हैं।
(घ) निश्चयवाचक सर्वनाम
ये सर्वनाम किसी संज्ञा
की निश्चयात्मकता को व्यक्त करते हैं। ये प्रायः अकारांत (यह,वह) होते है परंतु इसमें
प्रायः इकारांत होने की गहरी प्रवृत्ति विद्यमान होती है, जैसे - यही, वही इत्यादि।
(ड़) अनिश्चयवाचक सर्वनाम
ये सर्वनाम संज्ञा पद
की अनिश्चितता को व्यक्त करते है, जैसे 'कोई है' वाक्य में 'कोई' पद।
(च) निजवाचक सर्वनाम
जो सर्वनाम उत्तम पुरुष,
मध्यम पुरुष या अन्य पुरुष के संबंध में अपनेपन का बोध कराते है, वे निजवाचक सर्वनाम
कहलाते है। जैसे - 'यह मेरा अपना काम है' वाक्य में 'अपना' निजवाचक सर्वनाम है। 'अपना',
'अपनी', 'अपने लिए', 'अपने आप का' जैसी शब्दावली का प्रयोग निजवाचक सर्वनाम में प्रायः
किया जाता है।
संस्कृत व अंग्रेजी
से तुलना
हिंदी में सर्वनाम विकारी
पद है अर्थात भाषा की अन्य इकाइयों के अनुसार परिवर्तनीय है। ध्यातव्य है की संस्कृत
व अंग्रेजी में सर्वनाम लिंग तथा वचन दोनों के अनुसार परिवर्तनीय होते है जबकि हिंदी
में वचनानुसार ही परिवर्तन होते है, लिंगानुसार नहीं। उदाहरण के लिए-
हिंदी संस्कृत अंग्रेजी
पुल्लिंग वह जाता है। सः
गच्छति He Goes.
स्त्रीलिंग वह जाती है। सा
गच्छति She goes.
एकवचन वह जाता है। सः गच्छति He
goes.
बहुवचन वे जाते हैं। ते
सः गच्छति They go.
ध्यातव्य है कि हिंदी
के सर्वनाम संस्कृत से वैसे के वैसे स्वीकार नहीं किए गए। इस रूप में यह हिंदी का अपना
विकास है।
(1) विशेषण
विशेषण वह विकारी पद
है जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है। यह सामान्यतः संज्ञा की विशेषता
सूचित करता है पर जब सर्वनाम संज्ञा का स्थानापन्न बनता है तो वही विशेष्य हो जाता
है। कभी-कभी कुछ विशेषण क्रिया की विशेषता भी बताते है जो क्रिया-विशेषण कहलाते हैं
और अपनी प्रकृति में अविकारी होते है।
(2) विशेषणों के भेद
हिंदी व्याकरण में प्रायः
4 प्रकार के विशेषण स्वीकृत हैं जिनका विश्लेषण निम्नलिखित है-
(क) गुणवाचक विशेषण
जो विशेषण संज्ञा के
गुणों (जैसे -रंग, आकार, स्थान काल आदि) का बोध कराते हैं, वे गुणवाचक विशेषण कहलाते
हैं। ध्यातव्य है कि यहाँ गुण का अर्थ विशेषण से है, अच्छाई से नहीं। उद्धारण के लिए,
'मोटा', 'पतला', 'बुरा', 'नीचा', 'काला', 'पुराना', आदि गुणवाचक विशेषण हैं।
(ख) सार्वनामिक विशेषण
वे विशेषण जो अपने सार्वनामिक
रूप में ही संज्ञा की विशेषता बताते हैं, 'सार्वनामिक विशेषण' कहलाते हैं। उदाहरण के
लिए 'कितने लंबे हो तुम', 'अपनी दुनिया में रहो', 'तुम्हारी स्थिति कैसी है' आदि वाक्यों
में 'कितने', 'अपने' व 'तुम्हारी' सार्वनामिक विशेषण हैं। सार्वनामिक विशेषण के चार
उपभेद हैं।
1- निश्चयवाचक सार्वनामिक
विशेषण - 'वह' किताब दो।
2- अनिश्चयवाचक सार्वनामिक
विशेषण - 'कोई' किताब दो।
3- प्रश्नवाचक सार्वनामिक
विशेषण - 'कौन' सी किताब चाहिए?
4- संबंधवाचक सार्वनामिक
विशेषण - 'जो' कल मांगी थी, 'वही' दो।
(ग) परिणामबोधक विशेषण
ये विशेषण प्रायः तब
आते हैं जब विशेष्य के रूप में कोई द्रववाचक संज्ञा हो। ये भी दो प्रकार के हैं-
1- निश्चित परिणामबोधक
- 'एक मीटर' कपड़ा दो।
2- अनिश्चित परिणामबोधक
- 'थोड़ा' पानी पिलाओ।
(घ) संख्यावाचक विशेषण
यह विशेषण भी लगभग परिणामबोधक
विशेषण के समान है किन्तु ये तब आते हैं जब विशेष्य के रूप में कोई जातिवाचक संज्ञा
हो। ये भी दो प्रकार के होते है।
1-निश्चित संख्यावाचक
- 'बीस' राक्षस आए थे।
2-अनिश्चित संख्यावाचक
- 'कुछ' देवता आए थे।
(3) विकारी तथा अविकारी
विशेषण
ध्यातव्य है कि विशेषण
के इन चारों प्रकारों में से पहले दो प्रकार के विशेषण विकारी हैं जबकि अंतिम दो अविकारी।
गुणवाचक व सार्वनामिक विशेषण लिंगवचनानुसार परिवर्तन होते हैं जबकि परिणामबोधक व संख्यावाचक
विशेषण परिवर्तित नहीं होते है। इसे हम निम्नलिखित उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं-
(1) गुणवाचक विशेषण
क- वह बहुत अच्छा है
(पुल्लिंग + एकवचन)
ख- वह बहुत अच्छी है
(स्त्रीलिंग + एकवचन)
ग- वे बहुत अच्छे है
(पुल्लिंग + बहुवचन)
(2) सार्वनामिक विशेषण
क- वह कितना लंबा है।
(पुल्लिंग + एकवचन)
ख- वह कितनी लंबी है।
(स्त्रीलिंग + एकवचन)
ग- वे कितने लंबे हैं।
(पुल्लिंग + बहुवचन)
(3) परिणामबोधक विशेषण
क- राम ने कुछ पानी
पिया (पुल्लिंग + एकवचन)
ख- सीता ने कुछ पानी
पिया (स्त्रीलिंग + एकवचन)
ग- देवताओं ने कुछ पानी
पिया (पुल्लिंग + बहुवचन)
(4) संख्यावाचक विशेषण
क- एक बच्चा खेल रहा
है। (पुल्लिंग + एकवचन)
ख- एक बच्चे खेल रहे
हैं। (पुल्लिंग + बहुवचन)
ग- एक बच्ची खेल रही
है। (स्त्रीलिंग + एकवचन)
(4) अन्य विशेषताएँ
हिंदी की विशेष व्यवस्था
की कुछ और विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(क) विशेषणों के दो
भेद 'उद्देश्य विशेषण' व 'विधेय विशेषण' भी किए जाते हैं। यदि विशेषण विशेष्य से पूर्व
आता है तो उद्देश्य विशेषण कहलाता है, जैसे 'वह काला लड़का है' में 'काला'। यदि विशेषण
विशेष्य के बाद आए तो उसे विधेय विशेषण कहते हैं। जैसे- 'वह लड़का काला है' वाक्य में
'काला'। ध्यातव्य है कि विधेय विशेषण भी तार्किक रूप से संज्ञा की ही विशेषता बताते
है।
(ख) कभी-कभी कुछ विशेषण
विशेषण की ही विशेषता बताते हैं। ऐसे विशेषणों को 'प्रविशेषण' कहते हैं। उदाहरण के
लिए 'वह बहुत चालक हैं' में 'चालक' विशेषण व 'बहुत' प्रविशेषण है।
(ग) कहीं-कहीं विशेषण
का प्रयोग संज्ञा रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए - 'उस लंबू को देखो' व 'बड़ों
की बात माननी चाहिए' वाक्यों में 'लंबू' व 'बड़ों' का संज्ञवत् प्रयोग किया गया है।
(घ) हिंदी में कुछ विशेषण
तो मूलतः विशेषण शब्द ही हैं, जैसे सुंदर, काला, मोटा इत्यादि। शेष विशेषण संज्ञा,
सर्वनाम व क्रिया से निर्मित होते हैं। उदाहरण के लिए-
संज्ञा से विशेषण -
बनारस > बनारसी
सर्वनाम से विशेषण
- मैं > मेरा
क्रिया से विशेषण -
भूल > भुलक्कड़
(2) क्रिया
क्रिया भाषा का विकारी
पद है जिसके माध्यम से कुछ करना या होना सूचित होता है। व्याकरणिक दृष्टि से क्रिया
किसी भी भाषा की मूल इकाई मानी जाती है क्युकी कोई भी स्वतंत्र वाक्य सर्वनाम, विशेषण
आदि के अभाव में तो हो सकता है, किन्तु क्रिया के अभाव में नहीं।
(2) क्रिया के भेद
- अकर्मक व सकर्मक क्रिया
हिंदी में क्रिया का
वर्गीकरण कई आधारों पर किया गया है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है- 'अकर्मक' तथा 'सकर्मक'
क्रिया के मध्य किया गया विभाजन-
अकर्मक क्रिया
जब कोई क्रिया बिना
कर्म की अपेक्षा के हो तो अकर्मक क्रिया कहलाती है। उदाहरण के लिए 'राम हँसा', 'पक्षी
उड़ रहे है' आदि।
सकर्मक क्रिया
यह वह क्रिया जिसके
साथ कर्ता ही नहीं कर्म भी विद्यमान होता है। उदाहरण के लिए ने 'रावण' भी विद्यमान
है। यदि कर्म व्यक्त न हो, किन्तु कर्म की अपेक्षा विद्यमान हो तो क्रिया सकर्मक भी
होगी- जैसे - 'राम ने खाया' में 'खाना' कर्म की अपेक्षा विद्यमान है।
(3) क्रिया के भेद संयुक्त
क्रिया
क्रियाओं का एक प्रमुख
वर्ग 'संयुक्त क्रिया' का कहलाता है। 'संयुक्त क्रिया' वहाँ होती है जहाँ एक से अधिक
क्रियाएँ मिलकर किसी वाक्य में कार्य के होने या किए जाने को सूचित करें। संयुक्त क्रिया
के भीतर क्रियाएँ चार उपखंडों में विभाजित होती है-
(क) मुख्य क्रिया
(ख) संयोजी क्रिया
(ग) रंजक क्रिया
(घ) सहायक क्रिया
(क) मुख्य क्रिया
मुख्य क्रिया संयुक्त
क्रिया का मूल भाग है जिस पर संपूर्ण क्रिया संरचना टिकी होती है। उद्धारण के लिए
'राम तेजी से चलता जा रहा है' वाक्य में 'चलना' मुख्य क्रिया है।
(ख) संयोजी क्रिया
ये वे क्रियाएं है जो
मुख्य क्रिया के पक्ष या वृत्ति आदि की सूचना देती है। उदाहरण के लिए उपरोक्त वाक्य
में 'जा रहा' संयोजी क्रिया को सूचित करता है।
(ग) रंजक क्रिया
ये क्रियाएं संयुक्त
क्रियाओं में कभी-कभी हिस्सा बनती है। इनकी विशेषता यह है कि ये मुख्य क्रिया को विशिष्ठ
अर्थ प्रदान करती है। उदारहरण के लिए - 'गिर पड़ना' व 'फेंक देना' जैसी संयुक्त क्रियाओं
में 'पड़ना' व 'देना' रंजक क्रियाएं हैं।
(घ) सहायक क्रिया
ये संयुक्त क्रिया का
अनिवार्य अंग नहीं है। ये वे क्रियाएं हैं जो मुख्य क्रिया की उत्तरपदी होती हैं व
उसी पर निर्भर होती है। उदाहरण के लिए उपरोक्त वाक्य में 'है' सहायक क्रिया है।
क्रिया के भेदः समापिक
व असमापिक क्रिया
एक और दृष्टि से देखे
तो क्रियाओं को 2 भागों में बाँट सकते हैं- समापिक व असमापिक क्रिया।
(1) समापिक क्रिया
यह क्रिया वाक्य के
अंत में विधेय पक्ष के भीतर आती है। हिंदी में किसी भी सरल व सम्पूर्ण वाक्य में यह
जरूरी है कि क्रिया अंत में ही आए। इस रूप में हिंदी में हिंदी प्रायः सभी क्रियाओं
समापिक क्रियाएँ ही हैं। उदाहरण के लिए 'राम अयोध्या जाएगा' वाक्य में 'जाएगा' समापिक
क्रिया है।
(2) असमापिक क्रिया
यदि कोई क्रिया वाक्य
के विधेय पक्ष के अंतिम हिस्से में आने की बजाय कहीं और आ जाए तो वह असमापिक क्रिया
कहलाती है। ऐसी क्रियाओं को कृदन्तीय क्रिया/क्रिया का कृदन्तीय रूप भी कहते हैं। हिंदी
में कृदन्तीय क्रियाएँ 4 प्रकार से प्रत्ययों से निर्मित होती हैं-
(क) ता/ती/ते - चढ़ता/चढ़ती/चढ़ते
(ख) आ/ई/ए - बैठा/बैठी/बैठे
(ग) ना/नी/ने - सुना/सुनी/सुने
(घ) कर प्रत्यय - उठकर/बैठकर
इत्यादि।
कृदन्तीय क्रियाएं प्रत्ययों
से तो निर्मित होती है किन्तु प्रत्ययों से बनने के बाद भी ये क्रियापद तीन ही रूपों
में हो सकते हैं - संज्ञा,विशेषण या क्रिया-विशेषण उदाहरण के लिए-
संज्ञा - टहलना, विशेषण
- चलती (गाड़ी), क्रिया विशेषण - चलते-चलते (ए/ए), बैठकर (कर)
(5) क्रिया के भेदः
प्रेणनार्थक व नामधातु क्रिया
(1) प्रेणनार्थक क्रिया
जहाँ किसी कार्य का
होना या करना कर्ता के माध्यम से न हो बल्कि कर्ता के प्रेरणा से किसी अन्य व्यक्ति
के माध्यम से हो तो क्रिया प्रेणनार्थक क्रिया कहलाती है। उदाहरण के लिए मरवाना, उठवाना
इत्यादि।
(2) नामधातु क्रिया
जिन क्रियाओं का निर्माण
संज्ञा या विशेषण शब्दों के रूप परिवर्तन के माध्यम से हुआ हो, उन्हें नामधातु क्रिया
कहते हैं। उदाहरण के लिए-
हाथ (संज्ञा) > हथियाना
(नामधातु क्रिया)
लज्जा (संज्ञा)
> लजाना (नामधातु क्रिया)
(6) क्रिया में विकार
पैदा करने वाले तत्व
हिंदी व्याकरण में क्रिया
एक विकारी पद है जिसमें 6 कारणों से विकार आता है। ये हैं- लिंग, वचन, काल, वाच्य,
पुरुष तथा भाव या वृत्ति।
(1) लिंग के आधार पर
क्रिया परिवर्तन
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
राम जाता है। सीता जाती है
(2) वचन के आधार पर
क्रिया परिवर्तन
एकवचन - मैं जाता हूँ।
बहुवचन - हम जाते हैं।
(3) काल के आधार पर
क्रिया परिवर्तन
भूतकाल - मैं गया था।
वर्तमान काल - मैं जा रहा हूँ। भविष्य काल - मैं जाऊंगा।
(4) वाच्य के आधार पर
क्रिया परिवर्तन
कर्तृवाच्य - रावण ने
तीर चलाया। कर्मवाच्य - रावण द्वारा तीर चलाया गया। भाववाच्य - चलना ही तीर का काम
है।
(5) पुरुष के आधार पर
क्रिया परिवर्तन
प्रथम पुरुष- वह जाएगा।
मध्यम पुरुष - तुम जाओगे। उत्तम पुरुष - मैं जाऊंगा।
(6) भाव या वृत्ति के
आधार पर क्रिया परिवर्तन-
विध्यर्थ - तुम वहाँ
जाओ। (आदेशसूचक)
संदेहार्थ - वह जाता
ही होगा।
निश्चयार्थ - वह जा
रहा है। (सूचना के लिए)
संकेतार्थ - पानी बरसेगा
तो वह जाएगा।
संभावनार्थ - शायद वह
जाए।
वाक्य में क्रिया का
क्रम
हिंदी में वाक्य के
भीतर क्रिया का क्रम प्रायः अनिश्चित है। अंग्रेजी में 'क्रिया' कर्ता के पश्चयात परंतु
कर्म से पूर्व आती है। इसीलिए उसे कर्ता-क्रिया-कर्म भाषा (SVO language) कहते हैं
जबकि हिंदी में कर्ता के पश्चयात पहले कर्म आता है और क्रिया आती है। यही कारण है कि
हिंदी को कर्ता-कर्म-क्रिया (SVO language) कहते हैं। जहाँ तक संस्कृत का प्रश्न है,
वहाँ भी व्यवहारिक क्रम तो हिंदी के समान कर्ता-कर्म-क्रिया का है परंतु विभक्ति आधारित
संश्लिष्ट भाषा होने के कारण वहाँ क्रम परिवर्तन होने पर भी अर्थ संरचना पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए-
संस्कृत हिंदी अंग्रेजी
सः तत्र गच्छति वह वहाँ जाता है He goes there
(कर्ता-कर्म-क्रिया) (कर्ता-कर्म-क्रिया) (कर्ता-कर्म-क्रिया)
(8) निष्कर्ष
कुल मिलाकर, हिंदी की
क्रिया संरचना काफी वस्तुनिष्ट एवं वैज्ञानिक है। इसका मूल ढांचा चाहे संस्कृत क्रिया
संरचना से लिया हो किन्तु पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्ट और पुरानी हिंदी में आधुनिक
हिंदी के निर्माण की निरंतर प्रक्रिया में इनसे बहुत सी विशेषताओं स्वतः अर्जित हैं।
संयुक्त क्रियाओं तो हिंदी का अपना विकास है ही, क्रियाओं के कृदंतीय रूपों का विकास
भी भाषिक सरलीकरण व भाषिक विकास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व रहा है। इस रूप में भाषा
को जनसाधरण की भाषा बनाने के लिए जैसी सरल किन्तु वस्तुनिष्ठ क्रिया संरचना की आवश्यकता
थी, वैसी हिंदी भाषा ने अर्जित की है।