प्रश्नः 1.
संपादकीय का क्या महत्त्व
है?
उत्तरः
संपादक संपादकीय पृष्ठ
पर अग्रलेख एवं संपादकीय लिखता है। इस पृष्ठ के आधार पर संपादक का पूरा व्यक्तित्व
झलकता है। अपने संपादकीय लेखों में संपादक युगबोध को जाग्रत करने वाले विचारों को प्रकट
करता है। साथ ही समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। संपादकीय
पृष्ठों से उसकी साधना एवं कर्मठता की झलक आती है। वस्तुतः संपादकीय पृष्ठ पत्र की
अंतरात्मा है, वह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है। इसलिए कोई बड़ा समाचार-पत्र बिना संपादकीय
पृष्ठ के नहीं निकलता।
पाठक प्रत्येक समाचार-पत्र
का अलग व्यक्तित्व देखना चाहता है। उनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ देखना चाहता है जो उसे
अन्य समाचार से अलग करती हों। जिस विशेषता के आधार पर वह उस पत्र की पहचान नियत कर
सके। यह विशेषता समाचार-पत्र के विचारों में, उसके दृष्टिकोण में प्रतिलक्षित होती
है, किंतु बिना संपादकीय पृष्ठ के समाचार-पत्र के विचारों का पता नहीं चलता। यदि समाचार-पत्र
के कुछ विशिष्ट विचार हो, उन विचारों में दृढ़ता हो और बारंबार उन्हीं विचारों का समर्थन
हो तो पाठक उन विचारों से असहमत होते हुए भी उस समाचार-पत्र का मन में आदर करता है।
मेरुदंडहीन व्यक्ति को कौन पूछेगा। संपादकीय लेखों के विषय समाज के विभिन्न क्षेत्रों
को लक्ष्य करके लिखे जाते हैं।
प्रश्नः 2.
किन-किन विषयों पर संपादकीय
लिखा जाता है?
उत्तरः
जिन विषयों पर संपादकीय
लिखे जाते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
समसामयिक विषयों पर
संपादकीय
दिशा-निर्देशात्मक संपादकीय
संकेतात्मक संपादकीय
दायित्वबोध और नैतिकता
की भावना से परिपूर्ण संपादकीय
व्याख्यात्मक संपादकीय
आलोचनात्मक संपादकीय
समस्या संपादकीय
साहित्यिक संपादकीय
सांस्कृतिक संपादकीय
खेल से संबंधित संपादकीय
राजनीतिक संपादकीय।
प्रश्नः 3.
संपादकीय का अर्थ बताइए।
उत्तरः
‘संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है-समाचार-पत्र के
संपादक के अपने विचार। प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंत
विषयों पर अपने विचार
व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत
करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतएव संपादक को चाहिए कि
वह इसमें संतुलित टिप्पणियाँ ही प्रस्तुत करे।
संपादकीय में किसी घटना
पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें
किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण हो सकता है।
प्रश्नः 4.
संपादकीय पृष्ठ के बारे
में बताइए।
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र
का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों
पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ
महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक
के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी
होती है। समाचार-पत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
प्रश्नः 5.
अच्छे संपादकीय में
क्या गुण होने चाहिए?
उत्तरः
एक अच्छे संपादकीय में
अपेक्षित गुण होने अनिवार्य हैं –
संपादकीय लेख की शैली
प्रभावोत्पादक एवं सजीव होनी चाहिए।
भाषा स्पष्ट, सशक्त
और प्रखर हो।
चुटीलेपन से भी लेख
अपेक्षाकृत आकर्षक बन जाता है।
संपादक की प्रत्येक
बात में बेबाकीपन हो।
ढुलमुल शैली अथवा हर
बात को सही ठहराना अथवा अंत में कुछ न कहना-ये संपादकीय के दोष माने जाते हैं,अतः संपादक
को इनसे बचना चाहिए।
उदाहरण
1. दाऊद पर पाक को और
सुबूत
डॉन को सौंप सच्चे पड़ोसी
बने जनरल
भारत ने एक बार फिर
पाकिस्तान के चेहरे से नकाब नोच फेंका है। मुंबई बमकांड के प्रमुख अभियुक्तों में से
एक और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाक में होने के कुछ और पक्के सुबूत मंगलवार
को नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को सौंपे हैं। इनमें प्रमाण के तौर पर दाऊद के दो पासपोर्ट
नंबर पाकिस्तान को सौंपे हैं। यही नहीं, भारत सरकार ने दाऊद के पाकिस्तानी ठिकानों
से संबंधित कई साक्ष्य भी जनरल साहब को भेजे हैं। इनमें दो पते कराची के हैं। भारत
एक लंबे समय से पाकिस्तान से दाऊद के प्रत्यर्पण की माँग करता आ रहा है। अमेरिका भी
बहुत पहले साफ कर चुका है कि दाऊद पाक में ही है। पिछले दिनों बुश प्रशासन ने वांछितों
की जो सूची जारी की थी, उसमें दाऊद का पता कराची दर्ज है। दरअसल अलग-अलग कारणों से
भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए दाऊद अह्म होता जा रहा है। भारत का मानना है कि
1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाकों को अंजाम देने के बाद, फरार डॉन अब भी पाकिस्तान
से बैठकर भारत में आतंकवाद को गिजा-पानी मुहैया करा रहा है।
अमेरिका ने दाऊद को
अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। वाशिंगटन का दावा है
कि दाऊद कराची से यूरोप और अमेरिकी देशों में ड्रग्स का करोबार भी चला रहा है, लिहाजा
उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। तीसरी तरफ, पाकिस्तान के लिए दाऊद इब्राहिम इसलिए
महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में आतंक फैला रहे संगठनों को जोड़े रखने और उनको पैसे
तथा हथियार मुहैया कराने में दाऊद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खबर तो यहाँ तक
है कि दाऊद ने पाकिस्तान की सियासत में भी दखल देना शुरू कर दिया है और यही वह मुकाम
है, जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कभी-कभी दाऊद खतरनाक लगने लगता है। फिर भी, वह
उसे पनाह दिए हुए है। जब भी भारत दाऊद की माँग करता है, पाक का रटा-रटाया जवाब होता
है कि वह पाकिस्तान में है ही नहीं पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने कोशिश की कि अमेरिकी
खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल की फेहरिस्तों से दाऊद के पाकिस्तानी पतों को खत्म करा
दिया जाए, लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसके लिए तैयार नहीं हुए।
भारत के खिलाफ आतंकवाद
को पालने-पोसने और शह देने में पाकिस्तान की भूमिका जग-जाहिर है। एफबीआई ने दो दिन
पूर्व अमेरिका की एक अदालत में सचित्र साक्ष्यों के साथ एक हलफनामा दायर कर दावा किया
है कि पाक के बालाघाट में आतंकी शिविर सक्रिय है। बुधवार को भारत की सर्वोच्च पंचायत
संसद में सरकार ने खुलासा किया कि पाक अधिकृत कश्मीर में 52 आतंकी शिविर चल रहे हैं।
क्या जॉर्ज बुश इन बातों पर गौर फरमाएँगे? भारत को भी दाऊद चाहिए और अमेरिका को भी,
तो क्यों नहीं बुश प्रशासन पाकिस्तान पर जोर डालता है कि वह डॉन को भारत को सौंपकर
एक सच्चे पड़ोसी का हक अदा करे। पाकिस्तान के शासन को भी समझना चाहिए, साँप-साँप होता
है जिस दिन उनको डसेगा, तब पता चलेगा।
2. धरती के बढ़ते तापमान
का साक्षी बना नया साल
उत्तर भारत में लोगों
ने नववर्ष का स्वागत असामान्य मौसम के बीच किया। इस भू-भाग में घने कोहरे और कडाके
की ठंड के बीच रोमन कैलेंडर का साल बदलता रहा है, लेकिन 2015 ने खुले आसमान, गरमाहट
भरी धूप और हल्की सर्दी के बीच हमसे विदाई ली। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। ब्रिटेन
के मौसम विशेषज्ञ इयन कुरी ने तो दावा किया कि बीता महीना ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म
दिसंबर था। अमेरिका से भी ऐसी ही खबरें आईं। संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका था कि
2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर-पश्चिम और
मध्य भारत में आने वाले दिनों में तापमान ज्यादा नहीं बदलेगा। यानी आने वाले दिनों
में भी वैसी सर्दी पड़ने की संभावना नहीं है, जैसा सामान्यतः वर्ष के इन दिनों में
होता है। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का अनुमान है कि 2016 में तापमान बढ़ने
का क्रम जारी रहेगा और संभवतः नया साल पुराने वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ देगा।
इसकी खास वजह प्रशांत
महासागर में जारी एल निनो परिघटना है, जिससे एक बार फिर दक्षिण एशिया में मानसून प्रभावित
हो सकता है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हवा का गरमाना जारी है। इन
घटनाक्रमों का ही सकल प्रभाव है कि गुजरे 15 वर्षों में धरती के तापमान में चिंताजनक
स्तर तक वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्पष्ट
नज़र आने लगे हैं। आम अनुभव है कि ठंड, गर्मी और बारिश होने का समय असामान्य हो गया
है। गुजरा दिसंबर और मौजूदा जनवरी संभवत: इसी बदलाव के सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के
संकेत चार-पाँच दशक पहले मिलने शुरू हुए। वर्ष 1990 आते-आते वैज्ञानिक इस नतीजे पर
आ चुके थे कि मानव गतिविधियों के कारण धरती गरम हो रही है।
उन्होंने चेताया था
कि इसके असर से जलवायु बदलेगी, जिसके खतरनाक नतीजे होंगे, लेकिन राजनेताओं ने उनकी
बातों की अनदेखी की। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन रोकने की पहली संधि वर्ष 1992 में ही
हुई, लेकिन विकसित देशों ने अपनी वचनबद्धता के मुताबिक उस पर अमल नहीं किया। अब जबकि
खतरा बढ़ चुका है, तो बीते साल पेरिस में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्शियस
तक सीमित रखने के लिए नई संधि हुई। नया साल यह चेतावनी लेकर आया है कि अगर इस बार सरकारों
ने लापरवाही दिखाई तो बदलता मौसम मानव सभ्यता की सूरत ही बदल देगा।
3. कामकाजी महिलाओं
को मज़बूती देता फैसला
मातृत्व अवकाश की अवधि
12 से 26 हफ्ते करने और माँ बनने के बाद दो साल तक घर से काम करने का विकल्प देने का
केंद्र का इरादा सराहनीय है। आशा है, इसका चौतरफा स्वागत होगा। सरकार इन प्रावधानों
को निजी क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है, लेकिन इससे कॉर्पोरेट सेक्टर को आशंकित
नहीं होना चाहिए। इन नियमों को लागू कर कंपनियाँ न सिर्फ समाज में लैंगिक समता लाने
में सहायक बनेंगी, बल्कि गहराई से देखें तो उन्हें महसूस होगा कि कामकाजी महिलाओं के
लिए अधिक अनुकूल स्थितियाँ खुद उनके लिए भी फायदेमंद हैं। अक्सर माँ बनने के साथ महिलाओं
के कॅरियर में बाधा आ जाती है।
अनेक महिलाएँ तब नौकरी
छोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और तजुर्बा देने में कंपनियाँ, जो निवेश
करती हैं वह बेकार चला जाता है। असल में अनेक कंपनियाँ यही सोचकर नियुक्ति के समय प्रतिभाशाली
महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं करतीं। इस तरह वे श्रेष्ठतर मानव संसाधन से वंचित रह
जाती हैं। नए प्रस्ताव लागू होने पर महिलाएँ नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं होंगी। साथ
ही ये नियम बड़े सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप भी हैं। मसलन, बाल विकास की दृष्टि से
जीवन के आरंभिक छह महीने बेहद अहम होते हैं। उस दौरान शिशु को माता-पिता के सघन देखभाल
की आवश्यकता होती है, इसीलिए अब विकसित देशों में पितृत्व अवकाश भी दिया जाने लगा है,
ताकि नवजात बच्चों की तमाम शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी हो सकें।
फिर जब आधुनिक सूचना
तकनीक भौतिक दूरियों को अप्रासंगिक करती जा रही है, तो (जहाँ संभव हो) घर से काम करने
का विकल्प देने में किसी संस्था/कंपनी को कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्रीय सिविल सर्विस
सेवा (अवकाश) नियम-1972 के तहत सरकारी महिला कर्मचारियों को छह महीने का मातृत्व अवकाश
पहले से मिल रहा है। अब दो साल तक घर से काम करने का विकल्प सरकारी और निजी, दोनों
क्षेत्रों की नई माँ बनीं महिला कर्मचारियों को देना प्रगतिशील कदम माना जाएगा। .इससे
भारत उन देशों में शामिल होगा, जहाँ महिला कर्मचारियों के लिए उदार कायदे अपनाए गए
हैं। 42 देशों में 18 हफ्तों से अधिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान लागू है। वहाँ का अनुभव
है कि इन नियमों से सामाजिक विकास को बढ़ावा मिला, जबकि उत्पादन या आर्थिक विकास पर
कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ। बेशक ऐसा ही भारत में भी होगा। अत: नए नियमों को लागू
करने की तमाम औपचारिकताएँ सरकार को यथाशीघ्र पूरी करनी चाहिए।
4. जीवन गढ़ने वाला
साहित्यकार
जिन्होंने अपने लेखन
के जरिये पिछले करीब पाँच दशकों से गुजराती साहित्य को प्रभावित किया है और लेखन की
करीब सभी विधाओं में जिनकी मौजूदगी अनुप्राणित करती है, उन रघुवीर चौधरी को इस वर्ष
के ज्ञानपीठ सम्मान के लिए चुनने का फैसला वाकई उचित है। गीता, गाँधी, विनोबा, गोवर्धनराम
त्रिपाठी और काका कालेलकर ने उन्हें विचारों की गहराई दी, तो रामदरश मिश्र से उन्होंने
हिंदी संस्कार लिया। विज्ञान और अध्यात्म, यथार्थ तथा संवेदना के साथ व्यंग्य की छटा
भी उनके लेखन में दिखाई देती है। रघुवीर चौधरी हृदय से कवि हैं। विचारों की गहराई और
तस्वीरों-संकेतों का सार्थक प्रयोग अगर तमाशा जैसी उनकी शुरुआती काव्य कृतियों में
मिलता है, तो सौराष्ट्र के जीवन पर उनके काव्य में लोकजीवन की अद्भुत छटा दिखती है।
अलबत्ता व्यापक पहचान
तो उन्हें जीवन की गहराइयों और रिश्तों की फाँस को परिभाषित करते उनके उपन्यासों ने
ही दिलाई। उनके उपन्यास अमृता को गुजराती साहित्य में एक मोड़ घुमा देने वाली घटना
माना जा सकता है। इसके जरिये गुजराती साहित्य में अस्तित्ववाद की प्रभावी झलक तो मिली
ही, पहली बार गुजराती साहित्य में परिष्कृत भाषा की भी शुरुआत हुई। गुजराती भाषा को
मांजने में उनका योगदान दूसरे किसी से भी अधिक है। उपर्वास त्रयी ने रघुवीर चौधरी को
ख्याति के साथ साहित्य अकादमी सम्मान दिलाया, तो रुद्र महालय और सोमतीर्थ जैसे ऐतिहासिक
उपन्यास मानक बनकर सामने आए।
पर रघुवीर चौधरी का
परिचय साहित्य के दायरे से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से बहुत आगे जाता है। भूदान
आंदोलन से लेकर नवनिर्माण आंदोलन तक में भागीदारी उनके एक सजग-जिम्मेदार नागरिक होने
का परिचायक है, जिसका सुबूत अखबारों में उनके स्तंभ लेखन से भी मिलता है। साहित्य अकादमी
से लेकर प्रेस काउंसिल और फ़िल्म फेस्टिवल तक में उनकी भूमिका उनकी रुचि वैविध्य का
प्रमाण है। आरक्षण पर उन्होंने किताब लिखी है; हालांकि आरक्षण के मामले में गांधी और
अंबेडकर के समर्थक रघुवीर चौधरी पाटीदार आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। अपने गाँव को
सौ फीसदी साक्षर बनाने से लेकर कृषि कर्म में उनकी सक्रियता भी उन्हें गांधी की माटी
के एक सच्चे गांधी के तौर पर प्रतिष्ठित करती है।
5. अखंड भारत की सुंदर
कल्पना
भाजपा महासचिव राम माधव
ने अल जजीरा को दिए एक इंटरव्यू में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड
भारत के निर्माण की जो इच्छा जताई है, वह नई न होने के बावजूद चौंकाती है, तो उसकी
वजह है। तीनों देशों को एक करने की इच्छा बहुतेरे लोग जताते हैं। सपा मुखिया मुलायम
सिंह यादव तो जब-तब भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की बात करते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ की इस संकल्पना के पीछे, राम माधव पिछले साल तक भी जिसके प्रवक्ता थे, वस्तुतः
वृहद हिंदू राष्ट्र की वह संकल्पना है, जो विभाजन के कारण साकार नहीं हो सकी लेकिन
भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले राम माधव यह उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं कि पाकिस्तान
और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क आपसी रजामंदी से संघ और भाजपा की इच्छा
के अनुरूप वृहद हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए तैयार हो जाएँगे? यही नहीं,
राम माधव को इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के उन नेताओं की भी राय ले लेनी चाहिए, जो केंद्र
की मौजूदा सरकार की रीति-नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज देने की
बात करते हैं।
अलबत्ता इच्छा चाहे
वृहद हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने की हो या भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ
बनाने की, यथार्थ के आईने में यह व्यर्थ की कवायद ही ज़्यादा है। आज़ादी के बाद भारत
ने लोकतांत्रिक परंपरा को मज़बूत करते हुए विकास के रास्ते पर लगातार कदम बढ़ाया, जबकि
पाकिस्तान सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा रहा, जिसके सुबूत सैन्यतंत्र की मज़बूती, लोकतंत्र
की कमजोरी और कट्टरवाद तथा आतंकवाद के मज़बूत होने के रूप में दिखाई पड़ी। बांग्लादेश
ने ज़रूर अपने स्तर पर कमोबेश प्रगति की, पर कट्टरता के मामले में वह पीछे नहीं है।
लिहाजा इन दो देशों को अपने साथ जोड़ने से भारत पर बोझ ही बढ़ेगा। जब सत्ता के विकेंद्रीकरण
की बात करते हुए छोटी इकाइयों को तरजीह दी जा रही है, तब तीन देशों का महासंघ प्रशासनिक
दृष्टि से कितनी बड़ी चुनौती होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा यथार्थ को स्वीकारते
हुए इन तीनों देशों के आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना ही अधिक व्यावहारिक
लगता है।
6. संपादकीय
प्रत्येक जीव में अपने
प्रति सुरक्षा का भाव होना एक सहज वृत्ति है। पराक्रमी और शक्तिशाली व्यक्ति या जीव
से लेकर निरीह प्राणी तक, जिस किसी में भी चेतना होती है, सभी अपने लिए एक सुरक्षित
स्थान की तलाश या अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण की जद्दोजहद में जुटे दिखाई पड़ते
हैं। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो, अपने दैनिक जीवन में ही इसके कई उदाहरण दिखाई
पड़ेंगे लेकिन सुरक्षित और अनुकूल परिस्थिति का निर्माण बिना जोखिम उठाये संभव नहीं
होता है। यदि किसी को सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण बिना किसी संघर्ष के मिल भी जाए
तो वह जीवन अर्थहीन माना जाएगा।
ध्यान रहे कि संघर्ष
से न डरने वालों का जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत सदैव समस्याओं की दलदल में फँसता रहता
है। कर्मपथ पर सबसे अधिक भरोसा स्वयं पर करना होता है, लेकिन परिस्थितियाँ आने पर दूसरों
के सहयोग की भी ज़रूरत होती है। लेकिन यह सनद रहे कि केवल दूसरों से ही सहयोग लेना
उचित नहीं होता बल्कि सहयोग देने के लिए भी तत्पर रहना होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे
होते हैं, जिन्हें दूसरों से सहयोग लेने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें पराश्रित बना
देती है और इस प्रकार व्यक्ति न केवल कमज़ोर होता जाता है बल्कि स्वयं के कौशलों को
भी क्षीण करता जाता है।
लक्ष्य की ओर बढ़ते
हर युवा को यह समझना चाहिए कि जीवन में आदर्श परिस्थितियों जैसा कभी कुछ नहीं होता।
कभी धाराएँ अपनी दिशा में तो कभी प्रतिकूल दिशा में होती है। ऐसे में, हर व्यक्ति का
यही कर्तव्य है कि वह बगैर हिम्मत हारे, पूरी क्षमता से अपनी पतवार चलाता रहे। राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी व्यक्ति के आत्मबल पर खूब जोर देते थे। याद रहे कि मुश्किल परिस्थितियों
में व्यक्ति का आत्मबल ही सबसे अचूक हथियार होता है। हमें अपने आत्मबल को इतना ऊँचा
और अपने संकल्प को इतना दृढ़ बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हमारी मानसिक
शांति पर आँच न आ सके। हर युवा को यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन
नहीं होती कि वह व्यक्ति के अस्तित्व पर हावी हो जाए।
7. व्यक्ति पूजा की
संस्कृति से बाहर निकलें पार्टियाँ
अपने 131वें स्थापना
दिवस पर कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। पार्टी की महाराष्ट्र
इकाई की पत्रिका ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे लेखों में कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी के अतीत को उकेरा गया और जवाहर लाल नेहरू की कुछ नीतियों की ओलाचना की
गई। नेहरू के संबंध में कहा गया कि अगर वे सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से चलते तो
चीन, तिब्बत तथा जम्मू-कश्मीर के मामलों में स्थितियाँ कुछ अलग होतीं, लेकिन यह कोई
नई बात नहीं है। ऐसी राय रखने वाले लोग हमेशा मौजूद रहे हैं। यह भी सही है कि प्रथम
प्रधानमंत्री के अनेक समकालीन नेता तथा इतिहासकार यह नहीं मानते-जैसाकि ‘कांग्रेस दर्शन’
के लेख में कहा गया है-कि नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण थे या उनमें संवादहीनता
थी। वैसे गुजरे दौर के बारे में बौद्धिक एवं राजनीतिक दायरे में अलग-अलग समझ सामने
आए, इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह ऐसे मामलों पर
पार्टी के अंदर सभी विचारों को व्यक्त होने का मौका देती। उससे पार्टी का वैचारिक-यहाँ
तक सांगठनिक आधार भी-अधिक व्यापक होता।
हालांकि, सोनिया गांधी
के बारे में कही गई बातों के पीछे दुर्भावना तलाशी जा सकती है, लेकिन बेहतर नज़रिया
यह होगा कि पार्टी इन बातों का सीधे सामना करे, इसलिए कि अगर (जैसाकि लेख में अध्यक्ष
का कोई दोष नहीं है। यह कहना कि पार्टी में शामिल होने के महज 62 दिन बाद वे कांग्रेस
की अध्यक्ष बन गईं, सोनिया से कहीं ज्यादा कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी
है, जिसकी एक परिवार पर निर्भरता जग-जाहिर है लेकिन ऐसा अब ज़्यादातर पार्टियों के
साथ हो चुका है।
दरअसल, अपने देश में
राजनीतिक दलों ने अपने नेता को ‘सुप्रीमो’ यानी सबसे और तमाम सवालों से ऊपर मानने
तथा वंशवादी उत्तराधिकार की ऐसी संस्कृति अपना रखी है, जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक
विचार-विमर्श अवरुद्ध हो गया है। इस कारण उन दलों को गाहे-ब-गाहे शार्मिंदगियों से
भी गुजरना पड़ता है। फिलहाल, ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया
अगर ‘कांग्रेस दर्शन’ के संपादक की बर्खास्तगी तक सीमित
रह गई, तो यही कहा जाएगा कि उसने असली समस्या से आँखें चुरा लीं। सही सबक यह होगा कि
पार्टी अपने भीतर इतिहास और वैचारिक सवालों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित करे तथा किसी
पूर्व या वर्तमान नेता को आलोचना से ऊपर न माने।
8. हिंसक आंदोलनों पर
अब लगाम लगाने का वक्त
मामला गुजरात का था,
लेकिन हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और तोड़फोड़
की ताजा पृष्ठभूमि में यह सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ आया। उद्योगपतियों की संस्था
एसोचैम का अनुमान है कि हरियाणा में इस आंदोलन के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक
का नुकसान हुआ। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के समय भी बड़े पैमाने पर
सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। ऐसा ही राजस्थान में गुर्जर
आंदोलन के वक्त हुआ। ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण पाने का जाट अथवा दूसरी जातियों का दावा
कितना औचित्यपूर्ण है, यह दीगर सवाल है। मगर लोग अराजकता जैसी हालत पैदा करने पर उतर
आएँ, तो उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। लोकतांत्रिक समाज में वह सिरे से अस्वीकार्य
होना चाहिए।
यह बात दरअसल तमाम किस्म
के आंदोलनों पर लागू होती है, इसलिए यह संतोष की बात है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे
मामलों को अति-गंभीरता से लिया है। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पटेल
समुदाय के नेता हार्दिक पटेल पर दायर राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान
उसने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, ‘हम लोगों को राष्ट्र की संपत्ति जलाने और आंदोलन
के नाम पर देश को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।’
कोर्ट ने कहा कि वह सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों को दंडित करने
के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा।
न्यायाधीशों ने संकेत
दिया कि इसके तहत संभव है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को क्षतिपूर्ति
देनी पड़े। असल में यातायात रोकने से होने वाली दिक्कतों पर भी इसके साथ ही विचार करने
की आवश्यकता है। उससे हजारों लोगों के समय और धन की बर्बादी होती है और उन्हें एवं
उनके परिजनों को गहरी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अपनी माँग मनवाने के लिए दूसरों
को ऐसी मुसीबत में डालने का यह चलन खासकर आरक्षण की माँग को लेकर होने वाले आंदोलनों
में बढता गया है। इस पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से
अब इस दिशा में प्रभावी पहल की उम्मीद बंधी है। वैसे बेहतर होता राजनीतिक दल आम-सहमति
बनाते और संसद इस बारे में एक व्यापक कानून बनाती। किंतु वोट बैंक की चिंता में रहने
वाली पार्टियों से यह उम्मीद करना बेमतलब है, इसीलिए अनेक दूसरे मामलों की तरह इस मुद्दे
पर भी आशा न्यायपालिका से ही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्नः 1.
संपादक के दो प्रमुख
कार्य बताइए। (CBSE-2011, 2012, 2015)
उत्तरः
संपादक के दो प्रमुख
कार्य हैं –
(क) विभिन्न स्रोतों
से प्राप्त समाचारों का चयन कर प्रकाशन योग्य बनाना।
(ख) तात्कालिक घटनाओं
पर संपादकीय लेख लिखना।
प्रश्नः 2.
संपादकीय किसे कहते
हैं? (CBSE-2009, 2010, 2014)
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ पर तत्कालीन
घटनाओं पर संपादक की टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है। इसे अखबार की आवाज़ माना जाता
है।
प्रश्नः 3.
संपादकीय में लेखक का
नाम क्यों नहीं दिया जाता? (CBSE-2009, 2014)
उत्तरः
संपादकीय को अखबार की
आवाज़ माना जाता है। यह व्यक्ति की टिप्पणी नहीं होती। अपितु समूह का पर्याय होता है।
इसलिए संपादकीय में लेखक का नाम नहीं दिया जाता।
प्रश्नः 4.
संपादकीय का महत्त्व
समझाइए। (CBSE-2016)
उत्तरः
संपादकीय तत्कालीन घटनाक्रम
पर समूह की राय व्यक्त करता है। वह निष्पक्ष होकर उस पर अपने सुझाव भी देता है। मज़बूत
लोकतंत्र में संपादकीय की महती आवश्यकता है।
प्रश्नः 5.
समाचार पत्र के किस
पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?
उत्तरः
संपादकीय पृष्ठ।
प्रश्नः 6.
सामान्यतः किस दिन संपादकीय
नहीं छपता?
उत्तरः
रविवार।
प्रश्नः 7.
संपादकीय का उददेश्य
क्या है?
उत्तरः
संपादकीय का उद्देश्य
विषय विशेष पर अपने विचार पाठक व सरकार तक पहुँचाना है।
प्रश्नः 8.
संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या
होता है?
उत्तरः
संपादकीय, संपादक के
नाम पत्र, आलेख, विचार आदि।
प्रश्नः 9.
भारत में संपादकीय पृष्ठ
पर कार्टून न छपने का क्या कारण है?
उत्तरः
कार्टून हास्य व्यंग्य
का प्रतीक है। यह संपादकीय पृष्ठ की गंभीरता को कम करता है।
Report Writing
प्रश्नः 1.
रिपोर्ट के विषय में
बताइए।
उत्तरः
‘रिपोर्ट’ शब्द का हिंदी पर्याय ‘प्रतिवेदन’
है। समाचार संकलित करके उसे लिखकर प्रेस में भेजना रिपोर्टिंग कहलाता है। ज्यादातर
यह कार्य फील्ड में जाकर किया जाता है। एक संवाददाता सेमिनार, रैली अथवा संवाददाता
सम्मेलन से विविध प्रकार की खबरें एकत्रित करके उन्हें अपने कार्यालय में प्रेषित कर
देता है। वास्तव में रिपोर्ट एक प्रकार की लिखित विवेचना होती है जिसमें किसी संस्था,
सभा, दल, विभाग अथवा विशेष आयोजन की तथ्यों सहित जानकारी दी जाती है। रिपोर्टिंग का
उद्देश्य संबंधित व्यक्ति, संस्था, परिणाम, जाँच अथवा प्रगति की सही एवं पूर्ण जानकारी
देना है।
प्रश्नः 2.
रिपोर्टिंग के प्रकार
बताइए।
उत्तरः
रिपोर्टिंग कई प्रकार
की होती है; यथा –
राजनीतिक, साहित्यिक,
सामाजिक, आर्थिक भाषणों एवं सम्मेलनों की रिपोर्ट।
अदालतों की रिपोर्ट।
आपराधिक मामलों की रिपोर्ट।
प्रेस कांफ्रेंस या
संवाददाता सम्मेलन की रिपोर्ट।
युद्ध एवं विदेश यात्रा
की रिपोर्ट।
प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना,
दंगा आदि की रिपोर्ट।
संगीत सम्मेलन व कला
संबंधी रिपोर्ट।
खोजी समाचारों की रिपोर्ट।
व्यावसायिक प्रगति अथवा
स्थिति की रिपोर्ट।
पुस्तक प्रदर्शनी, चित्र
प्रदर्शनी आदि की रिपोर्ट।
प्रश्नः 3.
अच्छी रिपोर्टिंग के
लिए अपेक्षित गुण बताइए।
उत्तरः
एक रिपोर्टिंग तभी अच्छी
और उपयोगी बन सकती है, जब उसमें गुण हों। अच्छी रिपोर्टिंग के लिए निम्नलिखित गुण होना
अनिवार्य है –
रिपोर्टर के डेस्क से
संबंध अच्छे होने चाहिए।
रिपोर्ट पूरी तरह स्पष्ट
और पूरी हो।
रिपोर्ट की भाषा न आलंकारिक हो, न ही मुहावरेदार।
रिपोर्ट में सूचना भर
होनी चाहिए।
किसी भी वाक्य के एक-से
अधिक अर्थ न निकलें।
भाषा में प्रथम पुरुष
का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
जो भी तथ्य दिए जाएँ
वे विश्वसनीय एवं प्रामाणिक हों।
रिपोर्ट संक्षिप्त हों।
उन्हीं तथ्यों का समावेश
करना चाहिए जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण हों।
तथ्यों का तर्क और क्रम
सुविधानुसार हों।
रिपोर्ट का शीर्षक स्पष्ट
और सुरुचिपूर्ण हों।
शीर्षक ऐसा हो जो मुख्य
विषय को रेखांकित करे।
रिपोर्ट में प्रत्येक
तथ्य और विषय को अलग अनुच्छेद में लिखा जाना चाहिए।
प्रतिवेदन के अंत में
सभा अथवा दल अथवा संस्था के अध्यक्ष को हस्ताक्षर कर देने चाहिए।
प्रश्नः 4.
रिपोर्टिंग लिखने की
विधि बताइए।
उत्तरः
रिपोर्टिंग लिखने में
निम्नलिखित विधियों को अपनाना चाहिए –
सर्वप्रथम संस्था का
नाम लिखा जाना चाहिए।
बैठक सम्मेलन का उद्देश्य
स्पष्ट किया जाना चाहिए।
आयोजन स्थल का नाम लिखें।
आयोजन की तिथि और समय
की सूचना दी जानी चाहिए।
कार्यक्रम में उपस्थित
लोगों की जानकारी दी जाए।
कार्यक्रम एवं गतिविधियों
की जानकारी दी जाए।
यदि भाषण है तो उसके
मुख्य बिंदुओं के बारे में बताया जाए।
निर्णयों की जानकारी
भी दी जानी चाहिए।
प्रतियोगिता का परिणाम
आया हो तो उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
प्रश्नः 5.
रिपोर्ट की विशेषताएँ
बताइए।
उत्तरः
रिपोर्ट अपने आप में
एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसका महत्त्व मात्र समसामयिक नहीं होता अपितु संबंधित क्षेत्र
में सुदूर भविष्य तक भी इसकी उपयोगिता रहती है। रिपोर्ट की विशेषताओं का विवेचन नीचे
किया जा रहा है –
1. कार्य योजना-रिपोर्टर
को पहले पूरी योजना बनानी चाहिए। विषय का अध्ययन करके उसके उद्देश्य को समझना चाहिए।
इसकी प्रारंभिक रूपरेखा बनाने से रिपोर्ट लिखने में सहायता मिलती है।
2. तथ्यात्मकता-रिपोर्ट
तथ्यों का संकलन होता है। इसलिए सबसे पहले विषय से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों की
जानकारी लेनी पड़ती है। इसके लिए पुराने रिपोर्टों, फाइलों, नियम-पुस्तकों, प्रपत्रों
के द्वारा आवश्यक सूचनाएँ इकट्ठी की जाती हैं। सर्वेक्षण तथा साक्षात्कार द्वारा आँकड़ों
और तथ्यों को प्राप्त किया जाता है। इन तथ्यों को रिकार्ड किया जाए और आवश्यकता पड़े
तो इनके फोटो भी लिए जा सकते हैं।
3. प्रामाणिकता-तथ्यों
का प्रामाणिक होना अत्यंत आवश्यक है। किसी विषय, घटना अथवा शिकायत आदि के बारे में
जो तथ्य जुटाए जाएँ, उनकी प्रामाणिकता से रिपोर्ट की सार्थकता बढ़ जाती है।
4. निष्पक्षता-रिपोर्ट
एक प्रकार से वैधानिक अथवा कानूनी दस्तावेज़ बन जाती है। इसलिए रिपोर्टर का निर्णय
विवेकपूर्ण होना अत्यंत आवश्यक है। रिपोर्ट लिखते समय या प्रस्तुत करते समय रिपोर्टर
प्रत्येक तथ्य, वस्तुस्थिति, पक्ष-विपक्ष, मत-विमत का निष्पक्ष भाव से अध्ययन करे और
फिर उसके निष्कर्ष निकाले। इस प्रकार प्रत्येक स्थिति में उसका यह नैतिक दायित्व हो
जाता है कि वह नीर-क्षीर विवेक का परिचय दे। इससे रिपोर्ट उपयोगी होगा और मार्गदर्शक
भी सिद्ध होगा।
5. विषय-निष्ठता-रिपोर्ट
का संबंधित प्रकरण पर ही केंद्रित होना अपेक्षित है। यदि किसी विषय-विशेष पर रिपोर्ट
लिखा जाना है तो उससे संबंधित तथ्यों, कारणों और सामग्री आदि तक ही सीमित रखना चाहिए।
इसमें प्रकरण को एक सूत्र की तरह प्राप्त तथ्यों में पिरोया जाए, जिससे प्रकरण अपने-आप
में स्पष्ट होगा।
6. निर्णयात्मकता-रिपोर्ट
मात्र विवरण नहीं होती। इसलिए रिपोर्टर को संबंधित विषय का विशेष जानकार होना आवश्यक
है। यदि वह विशेषज्ञ होगा तो साक्ष्यों और तथ्यों का सही या गलत अनुमान लगा पाएगा तथा
उनका विश्लेषण करने में समर्थ होगा। साथ ही वह प्राप्त तथ्यों, साक्ष्यों और तर्कों
का सम्यक परीक्षण कर पाएगा और अपने सुझाव तथा निर्णय भी दे पाएगा।
7. संक्षिप्तता और स्पष्टता-रिपोर्ट
लिखते समय यह ध्यान रखा जाए कि उसमें अनावश्यक विस्तार न हो। प्रत्येक तथ्य या साक्ष्य
का संक्षिप्त और सुस्पष्ट विवरण दिया जाए। यदि रिपोर्ट काफी लंबा हो गया हो तो उसका
सार दिया जाए जिससे प्राप्त तथ्यों और सुक्षावों पर ध्यान तुरंत आकृष्ट हो सके। लेकिन
अस्पष्ट सूचना या विवरण से उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। अत: रिपोर्ट संक्षिप्त होते
हुए भी अपने आप में स्पष्ट और पूर्ण होनी चाहिए।
उदाहरण
प्रश्नः 1.
अपने मोहल्ले में हुई
चोरी की वारदात पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तरः
गत 20 जून, 2016 को
हमारे मोहल्ले में लाला खजूरी दास के यहाँ चोरी हो गई। चोरी रात के लगभग 12 बजे हुई।
घर के सभी लोग शादी समारोह में गए थे। हमारे मोहल्ले में हर रोज रात 11 बजे से 2 बजे
तक बिजली गुल हो जाती है। चोरों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। वे पीछे के दरवाज़े से
कोठी में दाखिल हुए। उन्होंने घर की प्रत्येक चीज़ का मुआयना किया। वे अपने साथ
50,000 रुपये नकद, 21 तोले सोना और अन्य कीमती सामान ले गए। लाला जी को चोरी की बात
सुबह 2:30 बजे पता चली जब वे वापिस लौटे। वे कुछ गणमान्य व्यक्तियों को साथ लेकर थाने
में पहुँचे। पुलिस ने चोरी की रिपोर्ट दर्ज कर ली है। वह चोरों की तलाश में जुट गई
है। इंस्पेक्टर महोदय ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही चोरों को पकड़ लिया जायेगा।
प्रश्नः 2.
पार्क में हुई छेड़छाड़
की घटना पर रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तरः
स्थानीय पार्क में आम
दिनों की तरह ही कल भी भारी भीड़ थी। लोग काफ़ी संख्या में मौजूद थे। बच्चे, बूढ़े,
युवक युवतियाँ सभी पार्क में घूमने फिरने का आनंद उठा रहे थे। तभी अचानक हलचल-सी शुरू
हो गई जिसे देखो वही पार्क के पश्चिमी छोर की ओर भागा जा रहा था। पता चला कि कुछ मनचले
युवकों ने एक लड़की से छेड़छाड़ की है। पता चलते ही लोगों ने उन युवकों को पकड़ लिया।
लड़की ने सारी घटना कह सुनाई। इसके बाद लोगों में रोष भर आया। उन्होंने तसल्ली से उन
मनचले युवकों की पिटाई कर दी। अंत में लड़कों ने सभी से माफ़ी माँगी तथा युवती को बहन
कहा। लोगों में बहुत गुस्सा भरा था अतः एक बुजुर्ग व्यक्ति ने मोबाइल से पुलिस को बुला
लिया। पुलिस सभी मनचले युवकों को पकड़कर ले गई। लड़की के बयान पुलिस ने दर्ज कर ली
है। आगे की कार्यवाही जारी है।
प्रश्नः 3.
भारतीय संस्कृति संस्थान
की आगरा शाखा ने 13 मई से 13 जून तक संस्कृति मास मनाया। इसका संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार
करें।
उत्तरः
भारतीय संस्कृति संस्थान
की आगरा शाखा ने 13 मई से 13 जून तक संस्कृति मास बड़ी धूमधाम से मनाया। इसके अंतर्गत
कई स्कूली प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। नागरिकों के लिए भी कई प्रतियोगिताएँ रखी गई
थीं। इन प्रतियोगिताओं में सरस्वती वंदना, भाषण, कथा, सुलेख, रागिनी, देशप्रेम गीत,
समूहगान, वंदे मातरम् गायन, पुष्प सज्जा, रंगोली, चित्रकला, कोलॉज और फैंसी ड्रेस आदि
प्रमुख थी।
इन प्रतियोगिताओं में
50 विद्यालयों के 1200 बच्चों ने भाग लिया। सभी प्रतियोगिताएँ शाखा के अनुसार की गई।
आगरा में संस्थान की कुल 15 शाखाएँ हैं। इसके बाद खंड के अनुसार प्रतियोगिताएँ हुईं।
अंत में पूरे आगरा से चयनित कलाकारों की प्रतियोगिताएँ हुई। सारा आयोजन कुशलता और सादगी
से हुआ। आगरा शाखा के संरक्षक डॉ० राजेश्वर गोयल ने बताया कि इस वर्ष से सामूहिक गान
का आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर आरंभ किया हुआ है जो भविष्य में भी जारी रहेगा। राष्ट्रीय
गान प्रतियोगिता में काँटे की टक्कर थी। निर्णायक मंडल को भी निर्णय लेने में अतिरिक्त
समय लगा। इस प्रतियोगिता में 300 बच्चों ने भाग लिया था। नागरिकों के लिए रखी गई प्रतियोगिताओं
में भी शहर के हजारों लोगों ने रुचि पूर्वक भाग लिया। विजेताओं को पुरस्कार मिले। अंत
में राष्ट्रगान से संस्कृति मास का समापन हो गया।
प्रश्नः 4.
आप जयेश सिंहल हैं।
जम्मू के रघुनाथ मंदिर के नजदीक जबरदस्त बम विस्फोट हुआ है। विस्फोट के समय आप वहीं
मौजूद थे। अपने अखबार के लिए इस विस्फोट की रिपोर्ट तैयार करें।
उत्तरः
रघुनाथ मंदिर के नजदीक
जबरदस्त बम विस्फोट : आज दिनांक 10 अगस्त को जम्मू के विश्व प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर
के नजदीक जबरदस्त बम विस्फोट हो गया। विस्फोट शाम को लगभग 5:30 बजे हुआ। धमाके के साथ
ही लोगों में हाय-तौबा मच गई। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि कई दुकानों के शीशे तक टूट
गए। शाम के समय इस बाज़ार में बहुत भीड़ होती है। बम के छर्रे कई लोगों को लगे। इस
विस्फोट में 10 लोग मौके पर ही मारे गए। लगभग 3 दर्जन से ज़्यादा लोग घायल हुए। घायलों
में महिलाएँ ज़्यादा थीं। पुलिस ने घटना स्थल पर पहुँचकर स्थिति को नियंत्रण में कर
लिया है। – जयेश सिंहल
प्रश्नः 5.
आपके विद्यालय में पिछले
सप्ताह रक्तदान शिविर लगाया गया। अपने विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के लिए इस शिविर
पर एक रिपोर्ट लिखें जो 120 शब्दों से ज़्यादा न हों।
उत्तरः
विद्यालय में रक्तदान
शिविर का आयोजन –
हमारे विद्यालय में
पिछले सप्ताह रेड क्रास सोसायटी द्वारा रक्तदान शिविर आयोजित किया गया। प्राचार्य महोदय
ने स्वयं छात्रों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्वयं रक्तदान कर छात्रों
के सामने उदाहरण पेश किया। उन्होंने बताया कि आपके द्वारा दान की गई रक्त की एक बूंद
भी दूसरे को जीवन दे सकती है। हमारे विद्यालय के कई अध्यापकों और छात्रों ने इस शिविर
में बढ़-चढ़कर भाग लिया। यह शिविर सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे तक चला। रेड क्रास सोसाइटी
के जिला अधिकारियों द्वारा रक्तदान करने वालों को प्रमाण-पत्र दिए गए। नारायण शंकर
कक्षा-ग्यारहवीं
प्रश्नः 6.
भ्रष्टाचार : सिर्फ
रैंकिंग घटी उत्तरः ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट : 85 से 76वें नंबर पर आया
भारत लेकिन अंक वही 38 ही
उत्तरः
भ्रष्टाचार कम करने
के मामले में भारत 38 अंकों के साथ दुनिया में 76वें पायदान पर आ गया है जबकि पिछले
साल इस लिस्ट में भारत 85वें नंबर पर था। यानी रैंकिंग के हिसाब से हम भ्रष्टाचार कम
करने में कामयाब रहे हैं लेकिन ऐसा है नहीं, क्योंकि हमें इस बार भी उतने ही नंबर मिले,
जितने पिछली बार मिले थे। यानी हमें रैंकिंग में यह फायदा भ्रष्टाचार कम करने की वजह
से नहीं, बल्कि लिस्ट में देशों की संख्या घटने की वजह हुआ है। वर्ष 2014 में इस लिस्ट
में 174 देश थे, जबकि 2015 में 168 देशों को इस लिस्ट में शामिल किया गया। इतना ही
नहीं, इस पायदान पर ब्राजील, थाईलैंड समेत छह देश हमारे साथ खड़े हैं।
यह खुलासा ट्रांसपेरेंसी
इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शंस इंडेक्स (सीपीआई) 2015 की जारी रिपोर्ट में हुआ है।
सीपीआई देशों को 1 से 100 तक का स्कोर देता है। जिस देश का स्कोर जितना ज्यादा होता
है वहाँ भ्रष्टाचार उतना ही कम माना जाता है। सीपीआई दुनियाभर के विशेषज्ञों की राय
के आधार पर सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार का अनुमान लगाता है।
डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट
देश-इस सूची में 100 में से सबसे ज़्यादा 91 अंक डेनमार्क को मिले हैं। यानी डेनमार्क
दुनिया का सबसे कम भ्रष्ट देश है। दूसरे नंबर पर फिनलैंड (90) और तीसरे नंबर पर स्वीडन
(89) है। 8-8 अंकों के साथ उत्तर कोरिया और सोमालिया दुनिया के सबसे भ्रष्ट देश हैं।
CBSE Class 12
Hindi रिपोर्ट लेखन
प्रश्नः 7.
टेनिस कोर्ट भी फिक्सिंग
के चंगुल में
उत्तरः
वर्ष के पहले ग्रैंड
स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन के पहले ही दिन फिक्सिंग की रिपोर्ट ने टेनिस जगत को झकझोर कर
रख दिया है। फिक्सिंग का साया कई खेलों पर यदा-कदा मंडराता रहा है। लगता है कि अब यह
टेनिस कोर्ट पर भी पांव पसार रहा है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि टेनिस में
बड़े पैमाने पर मैच फिक्सिंग होती है। बीबीसी और बजफीड न्यूज का दावा है कि पिछले एक
दशक में विश्व के शीर्ष 50 में से 16 खिलाड़ी फिक्सिंग में लिप्त रहे हैं जिनमें ग्रैंड
स्लैम चैंपियन भी शामिल हैं। विंबलडन में भी तीन मैच फिक्स थे। संदेह के घेरे में रहे
आठ खिलाड़ी इस समय ऑस्ट्रेलियन ओपन में खेल रहे हैं। इसका भंडाभोड़ करने वाले एक अज्ञात
समूह की ओर से लीक की गई गोपनीय फाइलों के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इन
16 में से किसी खिलाड़ी पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया। खिलाड़ियों से डील टूर्नामेंट
के दौरान होटलों के कमरों में होती है।
प्रश्नः 8.
भारतीय उद्यमी सबसे
ज़्यादा आशावादी
उत्तर
अर्थव्यवस्था में रिकवरी
की उम्मीद के मामले में भारतीय उद्यमियों का रवैया सबसे ज़्यादा आशावादी है। रिसर्च
फर्म ग्रांट थॉर्नटन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के उद्यमियों की यह सकारात्मक सोच
सरकार के सुधारवादी दृष्टिकोण, हाल के दिनों में की गई नीतिगत घोषणाओं और नियामकीय
बदलावों के चलते उत्पन्न हुई है।
ग्रांड थॉर्नटन ने अपनी
इंटरनेशनल बिजनेस रिपोर्ट (आईबीआर) में बताया है कि भारत के करीब 89 फीसदी उद्यमी सरकार
की स्थिरता से खुश हैं और उन्हें अर्थव्यवस्था में सुधार (रिकवरी) की उम्मीद है। ग्लोबल
आधार पर किया गया यह सर्वे 36 देशों के 2,580 उद्योगपतियों (बिजनेस लीडर्स) दवारा व्यक्त
की गई राय पर आधारित है। यह सर्वे अक्तूबर-दिसंबर 2015 तिमाही के दौरान किया गया था
और इसमें उद्यमियों से पूछा गया था कि अगले 12 महीनों में वह अर्थव्यवस्था को लेकर
कितने आशावादी हैं।
भारत 89 फीसदी सकारात्मक
जवाबों के साथ इस सर्वे में टॉप पर रहा। दूसरे स्थान पर 88 फीसदी के साथ आयरलैंड रहा,
जबकि फिलीपींस 84 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर रहा।
प्रश्नः 9.
वायु प्रदूषण से दुनिया
में हर साल हो रहीं 55 लाख मौतें
उत्तरः
दुनिया भर के शहरों
में तेजी से बढ़ रहा वायु प्रदूषण लोगों को बीमार ही नहीं कर रहा बल्कि जान भी ले रहा
है। जहरीली हवा के कारण हर साल 55 लाख लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है। विश्व
की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था चीन और भारत में ही इनमें से आधे से अधिक लोग अपनी जान
गंवाते हैं। भारत, चीन, अमेरिका और कनाडा के शोधकर्ताओं ने अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द
एडवांसमेंट ऑफ साइंस (एएएएस) की वार्षिक बैठक में जो रिपोर्ट रखी है, उससे बहुत ही
खौफनाक तसवीर उभरती है। ऊर्जा एवं औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले महीन कण, कोयले
की राख और गाड़ियों का धुआँ हवा को वाकई जहरीला बना रहा है। इनके कारण वायु प्रदूषण
मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह बन गया है।
केवल उच्च रक्तचाप,
खराब खानपान और सिगरेट ही इससे अधिक जान लेते हैं। भारत और चीन की स्थिति बेहद खराब
है। वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौत की 55 फीसदी घटनाएँ इन्हीं दो देशों में
घटती हैं। वर्ष 2013 में चीन में करीब 16 लाख और भारत में 14 लाख लोग वायु की खराब
गुणवत्ता की वजह से मरे थे। चीन में कोयला वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है। कोयले
के कारण बाहर होने वाले प्रदूषण ने 2013 में 366 लाख जान ली थी। यदि इस समस्या की ओर
ध्यान नहीं दिया गया तो 2030 तक यह आँकड़ा बढ़कर 13 लाख तक हो सकता है। दूसरी ओर भारत
में खाना बनाने के लिए लकड़ी, गोबर के उपले तथा दूसरी ऑर्गेनिक चीजों का इस्तेमाल हवा
को घुटन भरा बना रहा है। वायु प्रदूषण कम करने के लिए किए जा रहे सारे प्रयास नाकाफ़ी
हैं।
भारत और पाक में बदतर
होती जा रही स्थिति – रिपोर्ट में भारी जनसंख्या वाले एशियाई देशों को खासतौर पर चेतावनी
दी गई है कि अगर वायु की गुणवत्ता सुधारने के लिए तुरंत उपाय नहीं शुरू किए गए तो अगले
20 सालों में समस्या और विकराल हो जाएगी। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के माइकल
ब्राउर के अनुसार भारत, बांग्लादेश और पाक में स्थिति बदतर हो रही है। चीन वायु प्रदूषण
पर काबू कर सकता है लेकिन वहाँ के हालात पहले ही खराब हैं। उन्होंने चेताया कि उम्र
बढ़ने के साथ सांस की बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाएगा।
प्रश्नः 10.
43% जज कम हैं हाईकोर्ट
में, तेज़ी से बढ़ रहे हैं पेंडिंग केस
उत्तरः
देश के 24 हाईकोर्ट
इस समय जजों की कमी से जूझ रहे हैं। 1044 पद हैं, जबकि 443 कुर्सियाँ खाली हैं।
43% जज कम हैं। आठ हाईकोर्ट में तो चीफ जस्टिस ही नहीं हैं। कार्यवाहक चीफ जस्टिस ही
नेतृत्व कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी 31 में से पाँच जजों के पद खाली हैं। पेंडिंग
केस लगातार बढ़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में 60 हजार तो हाईकोर्ट में 45 लाख केस पेंडिंग
हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के
लिए बने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग कानून को रद्द किया था। इससे कॉलेजियम व्यवस्था फिर
लागू हो गई लेकिन इसके बाद कॉलेजियम में सुधार के लिए सुनवाई शुरू हो गई।
14 अप्रैल के बाद से
कोई नियुक्ति नहीं हुई-14 अप्रैल 2015 को एनजेएसी कानून का नोटिफिकेशन जारी होने के
बाद से अब तक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है। किसी हाईकोर्ट
के जज का ट्रांसफर या पदोन्नति भी नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट में तो आखिरी नियुक्ति जस्टिस
अमिताव रॉय की 27 फरवरी 2015 को हुई थी।
एडिशनल जजों के भरोसे
चल रहे हैं हाईकोर्ट-हाईकोर्ट में जजों की कमी दूर करने के लिए पिछले नौ महीने से एडिशनल
जजों का कार्यक्रम ही बढ़ाया जाता रहा। निर्भरता इसी बात से समझ सकते हैं कि चार हाईकोर्टों
में एडिशनल जज मंजूर पदों से भी ज्यादा है। कलकत्ता में 9, छत्तीसगढ़ में 1, गुवाहाटी
में 2 और केरल में 5 एडिशनल जज ज्यादा है।
प्रश्नः 11.
दुनिया की आधी दौलत
समेटे बैठे हैं महज 62 धन कुबेर
उत्तरः
दुनिया भर में लोगों
की आर्थिक स्थिति और आमदनी में असमानता में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसी का नतीजा है
कि दुनिया की आधी दौलत महज 62 अमीर लोगों के पास सिमट कर रह गई है। इस बात का खुलासा
राइट्स ग्रुप ओक्सफेम की एक ताजा सर्वे रिपोर्ट में किया गया है। ‘एन इकनॉमी फॉर वन
पर्सेट’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि
दुनिया के इन सबसे अमीर 62 लोगों में महिलाओं की संख्या केवल 9 है। इनकी आय में वर्ष
2010 के बाद से 1.76 लाख करोड़ डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
रिपोर्ट में बताया गया
है कि दुनिया की करीब आधी दौलत रखने वाले 62 रईसों से इतर दुनिया की कुल आबादी में
आधी भागीदारी रखने वाले सबसे गरीब लोगों की आय में वर्ष 2010 के बाद से करीब एक लाख
करोड़ डॉलर की गिरावट आई है। प्रतिशत में देखा जाए तो यह गिरावट 41 फीसदी बैठती है।
गिरावट का यह अनुपात भी तब है, जब इस अवधि के दौरान दुनिया की कुल आबादी में 40 करोड़
की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ)
की मंगलवार से शुरू होने वाली पाँच दिवसीय सालाना बैठक से पूर्व जारी यह रिपोर्ट स्पष्ट
करती है कि बीते पाँच वर्षों में दुनिया भर में लोगों की आय में असमानता कितनी तेजी
से बढ़ी है। दुनिया की आधी दौलत वर्ष 2015 में 62 लोगों के पास सिमटकर आ जाने से पूर्व
2010 में इतनी ज़्यादा दौलत रखने वालों की जमात में 388 लोग शामिल थे। इसके बाद से
आय में असमानता बढ़ने के चलते इन चुनिंदा रईसों का क्लब वर्ष 2011 में तेजी से सिमट
कर महज 177 लोगों पर आ गया।
इसके बाद 2012 में यह
संख्या 159 पर आई। तत्पश्चात वर्ष 2013 में एक बार फिर इसमें बड़ा बदलाव दिखा, जिससे
दुनिया की आधी दौलत महज 92 लोगों के पस सिमट गई और 2014 में धन कुबेरों का यह क्लब
सिमट कर महज 80 के दायरे में आ गया। दुनिया के विभिन्न देशों में लोगों की आय में असमानता
का जिक्र करते हुए इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी के
मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का वेतन यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों की औसत आय
के मुकाबले 439 गुना अधिक है।
प्रश्नः 12.
अशांत के मुकाबले शांत
देशों में मारे गए दोगुने पत्रकार
उत्तरः
दुनिया में युद्ध से
जूझ रहे अशांत देशों की तुलना में शांति प्रिय माने जाने वाले देशों में इस साल दोगुने
पत्रकार मारे गए हैं। पिछले साल ये आँकड़े बिलकुल उलट थे। वर्ष 2014 में युद्धग्रस्त
देशों में दो तिहाई पत्रकारों की हत्या हुई थी। इस साल दुनिया भर में पत्रकारों की
कुल हत्याओं में सिर्फ 36 प्रतिशत युद्धग्रस्त क्षेत्रों में हुई। जबकि 64 प्रतिशत
हत्याएँ आम तौर पर शांत माने जाने वाले देशों में हुई, जिनमें भारत भी शामिल है। यह
खुलासा मीडिया के लिए काम करने वाली संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’
की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।
इसके मुताबिक 2015 में
दुनिया भर में 110 पत्रकारों की हत्या हुई। इनमें फ्रांस के 10 और भारत के 9 पत्रकार
शामिल हैं। 67 पत्रकारों की हत्या काम के दौरान हुई है। इनमें फ्रांस और सोमालिया की
एक-एक महिला पत्रकार भी शामिल हैं। फ्रांस में चार्ली हेब्दो मामले की वजह से पत्रकारों
की हत्या हुई हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तुलना में
भारत में सबसे ज़्यादा पत्रकारों की हत्या हुई है।
प्रश्नः 13.
दुनिया के 30 सुपर शहरों
में दिल्ली का 24वां स्थान
उत्तरः
दुनिया के सबसे ताकतवर,
उत्पादक और संपर्क वाले 30 शहरों में दो भारतीय शहर दिल्ली और मुंबई के भी नाम हैं।
इंटरनेशनल रियल एस्टेट कंसल्टेंसी जेएलएल द्वारा तैयार की गई इस सुपर सिटी सूची में
भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई को 22वीं रैंक दी गई है, जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली
को 24वां स्थान मिला है। सूची में प्रथम पायदान पर जापान की राजधानी टोक्यो है। दूसरे
नंबर पर न्यूयॉर्क, तीसरे पर लंदन और चौथे पर पेरिस है। रिपोर्ट में कहा गया है कि
इन तीस शहरों में सीमा पार निवेश का 64 फीसदी आता है। इन शहरों के प्रति व्यावसायिक
आकर्षण है। ये आर्थिक और रियल एस्टेट में ताकतवर हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक
मुंबई का टॉप-20 इंप्रूवर सिटीज में भी है। ये वे शहर हैं जिनका व्यावसायिक आकर्षण
अधिक है। जिन अन्य शहरों में अपने व्यावसायिक आकर्षण में सुधार किया है, उनमें मिलान
(इटली), इस्तांबुल (तुर्की), तेहरान (ईरान), मेंड्रिड (स्पेन), काहिरा (मिस्र), रियाद
(सऊदी अरब), लागोस (नाइजीरिया), जकार्ता (इंडोनेशिया) और जेद्दाह (सऊदी अरब) शामिल
हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन सालों में इन शहरों ने 7 प्रतिशत से अधिक
वृद्धि दर हासिल की। जेएलएल के मुताबिक ग्लोबल कॉर्पोरेशन के लिए एक हब के रूप में
मुंबई ने अपनी स्थिति को मज़बूत किया है। गुजर बसर करने के लिहाज से दुनिया के सबसे
सस्ते स्थानों में नई दिल्ली और मुंबई भी शुमार हैं। जबकि सबसे महँगे शहरों में ज्यूरिख,
जिनेवा, न्यूयॉर्क, ओस्लो और लंदन शामिल हैं। स्विस बैंक यूबीएस की रिपोर्ट के अनुसार,
ब्रिटेन की राजधानी लंदन पाँचवां सबसे महँगा शहर है लेकिन बड़े शहरों की तुलना में
यहाँ रहना कठिन है।